काहे रे! बन खोजन जाई।
सर्व-निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई।
पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है, मुकुर माहिंजस छाई।
तैसे ही हरि बसैं निरंतर, घट ही खोजो भाई।
बाहर भीतर एकै जानौ, यह गुरु ज्ञान बताई।
जन नानक बिन आपा चीन्हे, मिटै न भ्रम की काई।।
-नानक देव
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काहे रे! बन खोजन जाई।
सर्व-निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई।
पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है, मुकुर माहिंजस छाई।
तैसे ही हरि बसैं निरंतर, घट ही खोजो भाई।
बाहर भीतर एकै जानौ, यह गुरु ज्ञान बताई।
जन नानक बिन आपा चीन्हे, मिटै न भ्रम की काई।।
इसका अर्थ है : हे मानव , तुझे प्रभु को खोजने के लिए जंगलों में भटकने की कोई जरूरत नहीं है , प्रभु सब जगह निवास करते है , वह सब जगह है | जिस प्रकार फूलों में फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी होती है , उसी प्रकार परमात्मा भी मनुष्य के अंदर छिपे होते है | तुम्हें ईश्वर की खोज करनी है तो अपने अंदर ही करो |
ईश्वर की प्राप्ती हमें गुरु के ज्ञान के बिना नहीं हो सकती है | जब तक हम स्वयं को पहचान नहीं सकते है , तब तक हम ईश्वर को प्राप्त नहीं सकते है | गुरु हमें सही मार्ग दिखाते है | हमें हमारा वास्तविक स्वरुप क्या है ? सब गुरु के बिना संभव नहीं |
Answer:
श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज कहते हैं,हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुमारे संग,तुमारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी वाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भोतिक जगत में प्राप्त होता है उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है | परन्तु यह हमें गुरु से ज्ञान प्राप्ति के पछ्चात ही पता चलता है | जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते के हम कौन हैं ? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है ? तब तक हमारे संशयों का नाश नहीं हो सकता | परन्तु यह सब गुरु के बिना संभव नहीं |
Explanation:
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