काहे री नलनीं कुम्हिलानी,
तेरे ही नालि सरोवर पानी।
जल मैं उतपति जल मैं बास, जल मैं नलनी तोर निवास।
ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि।
कहै कबीर जे उदिक समाँन, ते नहीं मूए हमारे जान।। 5।।
('कबीर ग्रन्थावली'
C
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