का
हि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बह रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।1।।
- भाग है जहाँ से दो
आप त्रि से बननेवाला
कार चार, पाँच, छह
में अकसर आते हैं।
देखिए कि क्या इन
- मिलती-जुलती हैं.
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह।।2।।
जैसे वाक्य आए हैं।
लगा सकते है।
गोग होता है। इनमें
ण बना दिया गया
य का प्रयोग हुआ
त्यय से बननेवाले
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान।।3।।
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात।।4।।
(I need explaination in Hindi)
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इसका तात्पर्य है कि जब हम किसी संकट में नहीं रहते हैं तो हमारे साथ सब लोग रहते हैं अगर हम किसी संकट में आ जाते हैं तो हमारे साथ कोई भी नहीं रहता है
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