कुहासा और किरण नाटक के तृतीय एवं अंतिम अंक की कथा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए
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कुहासा और किरण नाटक के तृतीय एवं अंतिम अंक की कथा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए
कृष्ण चैतन्य अपने निवास पर गायत्री देवी के चित्र के सम्मुख स्तब्ध में बैठा अपनी पत्नी के बलिदान की महानता का अनुभव करता है सुनंदा मृत्यु से पूर्व गायत्री देवी द्वारा लिखे गए पत्र की सूचना पुलिस को देख कर जीवित व्यक्तियों के मुखौटो को उतारना चाहती है इसी समय सी आई डी के अधिकारी आते हैं विपिन बिहारी उन्हें अपने पत्रों के स्वामित्व परिवर्तन की सूचना देता है प्रभा उन्हे बताती है कि अमूल्य निर्देश है
कृष्णा चैतन्य कागज की चोरी का रहस्य स्पष्ट करते हुए कहता है कि वास्तव में चोरी की गई या कहानी एक जालसाजी थी क्योंकि अमूल्य उसका राज जान गया था कि वह कृष्ण चैतन्य नहीं बल्कि कृष्णदेव है- मुल्तान षड्यन्त्र का मुखबिर इसके बाद वह विपिन एवं उमेश के भ्रष्टाचार एवं चोर बाजारी का रहस्य भी खोल देता है
सीआईडी के अधिकारी टमटा साहब सभी को अपने साथ ले जाने लगते हैं तभी पेंशन ना मिलने से विक्षिप्त-सी हो गई मालती आकर अपनी पेंशन की बात कहती है कृष्ण चैतन्य अपना सब कुछ मालती को सौंप देता है कृष्ण चैतन्य के साथ-साथ विपिन बिहारी एवं उमेश अग्रवाल भी गिरफ्तार कर लिए जाते हैं तथा निर्दोश होने के कारण अमूल्य को छोड़ दिया जाता है अमूल्य प्रभा आदि सभी को अपने अंतर यानी हृदय के चोर दरवाजों को तोड़ने तथा मुखौटा लगा कर घूम रहे मगरमच्छो को पहचानने का संदेश देता है 'बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता' इस कथन के साथ नाटक समाप्त हो जाता है
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कुहासा किरण नाटक के दर्शन करा राशि बताइए लिखिए
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