क. हतिया गाँव के आदिवासी शीत ऋतु की विदाई का उत्सव कैसे मनाते थे?
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वर्षा विगत सरद रितु आई । लछिमन देखहू परम सुहाई ।। फूले कास सकल महि छाई । जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई ।।
आश्विन और कार्तिक शरद् ऋतु के दो मास होते हैं । इस ऋतु में सूर्य पिंगल और उष्ण होता है । आकाश निर्मल और कहीं-कहीं श्वेत वर्ण मेघ युक्त होता है । सरोवर कमलों सहित हंसों से शोभायमान होते हैं । सूखी भूमि चीटियों से भर जाती है ।
वर्षा काल में भूमिस्थ जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ मिल जाते हैं । मल, मूत्र, कीट, कृमि उनका मल-मूत्र सब कुछ जल में आकर मिल जाता है । इसे निर्विष करने के लिए सूर्य की जीवाणु नाशक प्रखर किरणें, चन्द्रमा की अमृतमय किरणें और हवा आवश्यक है तथा यह सब शरद् ऋतु में प्राप्त होती है ।
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