कोई चार शिक्षाप्रद कहानियां हिंदी में
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लालच का फल | Lalach Ka Fal | Hindi Kahani
लालच का फल Lalach Ka Fal किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह लालची स्वभाव का था, हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे।
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अलग दिखने की कीमत
जब चूहों व नेवलों की लड़ाई हुई तो हार चूहों की हुई। हार के बाद चूहों की बैठक हुई जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि उनकी हार बेतरतीब तरीके तथा व्यूह रचना के अभाव में लड़ने के कारण हुई। अब चूहों ने अपने कुछ सेनापति नियुक्त किए। इन सेनापतियों को अलग से पहचाना जा सके, इसके लिए उन्हें विशेष प्रकार के हेलमेट पहनने को दिए गए, जिन पर लम्बे सींग निकले हुए थे।
लेकिन जब दोबारा वह मैदान में उतरे तो भी जीत नेवलों की ही हुई। चूहे किसी तरह जान बचाकर अपने बिलों में जा घुसे, लेकिन सेनापति बने चूहे भाग्यशाली नहीं थे। नेवलों ने उनके हेलमेट पर लगे सींग चबा डाले थे और उन्हें जान से मार डाला।
नकलची का हश्र
एक गधे को अपनी भद्दी सी आवाज कतई पसंद न थी। एक दिन जब गधा घास चर रहा था तो उसकी भेंट गीत गुनगुनाते एक टिड्डे से हुई। गधा उसकी आवाज सुनकर मोहित हो गया और पूछ बैठा-‘‘भई टिड्डे ! अपनी इस मधुर आवाज का राज मुझे भी तो बताओ।’’
‘‘ओस की बूंदें।’’ टिड्डा बोला-‘‘जिन्हें मैं रोज सुबह खाता हूं।’’
गधा आखिर गधा ही था। अब उसने और भी जोशो-खरोश से घास खाना शुरू कर दी। खासकर वह सुबह के समय ही घास खाता था, जब वह ओश से भीगी रहती थी। लेकिन उसकी आवाज न बदलनी थी, न ही बदली। हाँ, घास खा-खाकर वह इतना मोटा जरूर हो गया कि किसी काम लायक न रहा।
स्टार वार
यह एक यूनानी नैतिक लघु कथा है। टॉरिस राशि के नक्षत्रमंडल में एलडेबारॉन सबसे चमकीला सितारा था। उसे प्रेम हो गया था इलेक्ट्रा से, जो प्लेएड्स समूह का सम्मोहन कर लेने वाला सितारा थी। लेकिन एलडेबारॉन अनजान था एलकायन से। एलकायोन भी इलेक्ट्रा का प्रेमी था। एलडेबारॉन को इसका पता चला, जब उसने रास्ते में उनके ऊंटों के झुण्ड पर हमला कर दिया।
यूनानी मिथक है कि आज भी ये दोनों सितारे आपस में उलझते हैं। शांत, धूल रहित रातों में इन्हें देखा जा सकता है। इलेक्ट्रा के पीछे लाल एलकायोन और उसके पीछे अपने ऊंटों के झुण्ड जैसे सितारों के साथ एलडेबारॉन दिखाई देता है।
धूर्त भेड़िया
एक भेड़िया था। बड़ा ही धूर्त। एक दिन उसे मोटा-ताजा बैल मरा पड़ा मिला। कोई दूसरा न आ जाए, यह सोचकर वह जल्दी-जल्दी उसका मांस खाने लगा। जल्दबाजी के कारण उसके गले में एक हड्डी अटक गई। उसे लगा, अगर जल्दी ही हड्डी बाहर न निकली तो प्राण त्यागने पड़ेंगे। वह भागा-भागा नदी किनारे रहने वाले एक दयालु सारस के पास पहुंचा और प्रार्थना की-‘‘सारस भाई ! मेरी मदद करो, मेरे गले में फंसी हड्डी निकाल दो, मैं तुम्हें इनाम दूंगा।’’
सारस लालची नहीं दयालू था। उसने फौरन अपनी चोंच भेड़िए के गले में डालकर हड्डी बाहर निकाल दी और बोला- ‘‘मेरा इनाम दो।’’
‘‘इनाम ? कैसा इनाम ?’’ भेड़िए ने कहा-‘‘भगवान का शुक्रिया अदा करो कि मैं तुम्हारी गरदन न चबा गया। इससे बड़ा इनाम और क्या होगा ?’’ कहकर धूर्त भेड़िया चला गया।
दरअसल, उसकी जान अभी भी बैल का माँस खाने में अटकी हुई थी।
सींग भले या पांव
एक बार एक बारहसिंगा तालाब के किनारे पानी में अपने सींगों की छाया देखकर सोचने लगा-‘मेरे सींग कितने सुन्दर हैं, पर मेरे पैर कितने दुबले-पतले और भद्दे हैं।’
तभी उसके कानों में कहीं आस-पास ही शेर के दहाड़ने की आवाज पड़ी। बारहसिंगा डरकर तेजी से भागा। उसने पीछे मुड़कर देखा। शेर उसके पीछे लग चुका था। भागते-भागते वह बहुत दूर निकल आया। आगे एक बीहड़ था। एकायक उसके सींग एक पेड़ की डालियों में उलझ गए। बारहसिंगे ने अपने सींग छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर वे नहीं निकले।
उसने सोचा, ‘ओह ! मैं अपने दुबले-पतले और भद्दे पैरों को कोस रहा था। पर उन्हीं पैरों ने शेर से बचने में मेरी सहायता की। मगर अपने जिन सुदंर सींगो की मैंने बहुत तारीफ की थी। अब वे ही शायद मेरी मृत्यु का कारण बनने वाले हैं।’
इतने में शेर भी दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुंचा और उसने बारहसिंहे को मार डाला।