Hindi, asked by kgamya2011, 19 days ago

कोई jati छोटा जाति नहीं है इसके ऊपर एक कहानी लिखिए​

Answers

Answered by bhandariajeet389
1

Answer:

dmgmahhkkcckcnsnnvkdvmdncnmxvmxnxmmvnxnvznvn

Answered by ayushionlineclass1
1

Answer:

भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयों आदिवासी समाज वास्तव में एक ऐसा समाज है, जिसने अपनी परम्पराएं, संस्कार और रीति-रिवाज संरक्षित रखे है। यह बात सही है कि अपने जल, जंगल-जमीन में सिमटा यह समाज शैक्षिक आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण राष्ट्र की विकास यात्रा के लाभों से वंचित है। डॉ. रमणिका गुप्ता आदिवासियों के विषय में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए लिखती हैं, ”यह सही है कि आदिवासी साहित्य अक्षर से वंचित रहा, इसलिए वह उसकी कल्पना और यथार्थ को लिखित रूप से न साहित्य में दर्ज कर पाया और न ही इतिहास में। लोकगीतों, किंवदन्तियों, लोककथाओं तथा मिथकों के माध्यम से उसकी गहरी पैठ है।“

उत्तर प्रदेश की बसोर जाति

यह सच है की भारत में सभी वर्ण के लोगों को समान सम्मान,इज्जत और अवसर दिया जाता था। सबकुछ इंसान के योग्यता पर आधारित होता था। शिक्षा सबके लिए बहुत जरुरी हिस्सा था, किंतु मुग़लों ने सबकुछ बर्बाद कर दिया। फिर अंग्रेज़ो ने जातिप्रथा को बढ़ावा दिया। अंग्रेज़ों ने गलत तथ्य दिए उनमें से एक तथ्य यह है कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहला विद्रोह तिलका मांझी ने सन् 1824 में में उस समय किया था, जब उन्होंने अंग्रेज़ कमिश्नर क्लीवलैण्ड को तीर से मार गिराया था। सन् 1765 में खासी जनजाति ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध विद्रोह किया था। सन् 1817 ई. में खानदेश आन्दोलन, सन् 1855 ई. में संथाल विद्रोह तथा सन् 1890 में बिरसा मुंडा का आन्दोलन अंग्रेज़ों के विरूद्ध आदिवासियों के संघर्ष की गौरव गाथाएं हैं, किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इतिहाकार 1857 ई. को ही नवजागरण का प्रस्थान बिन्दु मानते हैं और आदिवासियों के सशस्त्र विद्रोह की उपेक्षा कर देते हैं। यह अत्यन्त क्षोभ की बात है कि जिन आदिवासियों ने भारतभूमि को अंग्रेज़ों के चंगुल से बचाने के लिए संघर्ष छेड़ा, उन्हीं दीन-हीन अबोध आदिवासियों को स्वाधीनता मिलने के बाद से ही विकास के नाम पर उनके जल, जंगल और जमीन से खदेड़ने का अभियान शुरू कर दिया गया।

परिणाम यह हुआ कि जिन जंगलों में आदिवासी पर्यावरण के साथ एकात्मता स्थापित करते हुए निवास किया करते थे, उन्हें विकास की आवश्यकता के नाम पर उजाड़ दिया गया और वहां पर बड़े-बड़े कल-कारखाने, खदान, बांध आदि बना दिए गए। रमणिका गुप्ता ”हादसे“ कहानी में ऐसा ही एक चित्र खींचते हुए कहती हैं ”मज़दूर सब पिछड़े, दलित, आदिवासी बड़ी जाति के लोग डण्डा लेकर घूमते निरर्थक मारपीट कर अपना आतंक जमाते, लेकिन मेहनत या मज़दूरी कभी नहीं करते थे। मज़दूरी करना, खेत जोतना अर्थात् जाति बहिष्कृत होना। खासकर छोटा नागपुर में एक सौ बीघे खत का मालिक भी चपरासी की नौकरी खुशी-खुशी करना पसन्द करता था, पर अपना परती पट्टा खेत जोतने से उसकी प्रतिष्ठा पर धक्का लगता था।

”भिलाई वाणि“ पत्रिका के आदिवासियों के शोषण का चित्र खींचते हुए ”यहां सब बिकता है“ शीर्षक से लेख में लिखा है, ”करोड़ों रूपयों का प्रसाधन, प्रकृति खनिज सम्पदा गरीब तबके के बेसहारा लोग छोटे-छोटे आरोपों व संघर्ष में फंसकर अपराधी के रूप में सालों-साल जेलों में सड़ते रहते हैं, वहीं धन-बल वाले करोड़ों रूपयों का घोटाला करने के बाद भी खुलेआम घूमते दिखते हैं। जेलों में सड़ने वालों ने सर्वाधिक संख्या कम पढ़े लिखे लोगों की ही हैं और उनके साथ-साथ उनके लिए आवाज़ उठाने वाले बुद्धिजीवी और क्रान्तिकारी भी 15-20 वर्षों स जेलों में सड़ रहे हैं।

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि आदिवासी देश की कुल आबादी का 8.14 प्रतिशत भूभाग पर हैं और भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल के 15 प्रतिशत भूभाग पर ये निवास करते हैं। भारत का संविधान आदिवासी अथवा अनुसूचित जनजाति समाज को अलग से परिभाषित नहीं करता किन्तु संविधान के अनुच्छेद-366 (25) के अन्तर्गत ”अनुसूचित“ का सन्दर्भ उन समुदायों में करता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-342 में अनुसूचित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद-342 के अनुसार अनुसूचित जनजातियां वे आदिवासी या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी समुदायों का भाग या उनके समूह हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा इस प्रकार घोषित किया गया है। किसी समुदाय के अनुसूचित जनजाति में विशिष्टीकरण के लिए पालन किए गए मानदण्ड हैं, आदिम लक्षणों का होना, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक बिलगांव, वृहत्तर समुदाय से सम्पर्क में संकोच और पिछड़ापन। यह दुखद तथ्य हैं कि आदिवासी समाज की 52 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करती है तथा 54 प्रतिशत आदिवासियों के पास आर्थिक सम्पदा, संचार और परिवहन की पहुंच रही है।

आदिवासियों की साक्षरता की प्रगति यात्रा इस चार्ट से समझी जा सकती है- से गठित और विभक्त है। श्रमविभाजनगत आनुवंशिक समूह भारतीय ग्राम की कृषिकेंद्रित व्यवस्था की विशेषता रही है। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में श्रमविभाजन संबंधी विशेषीकरण जीवन के सभी अंगों में अनुस्यूत है और आर्थिक कार्यों का ताना बाना इन्हीं आनुवंशिक समूहों से बनता है। यह जातीय समूह एक ओर तो अपने आंतरिक संगठन से संचालित तथा नियमित है और दूसरी ओर उत्पादन सेवाओं के आदान प्रदान और वस्तुओं के विनिमय द्वारा परस्पर संबद्ध हैं। समान परंपरागत पेशा या पेशे, समान धार्मिक विश्वास, प्रतीक सामाजिक और धार्मिक प्रथाएँ एवं व्यवहार, खानपान के नियम, जातीय अनुशासन और सजातीय विवाह इन जातीय समूहों की आंतरिक एकता को स्थिर तथा दृढ़ करते हैं। इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत्‌ सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं।

plz mark me brainlist and follow me

Similar questions