कोई लोकगीत पूरा लिखिए
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लोकगीत शास्त्रीय संगीत से भिन्न है। लोकगीत सीधे लोगों के गीत होते है। घर, नगर, गाॅव के लोगों के अपने गीत होते है। इसके लिए शास्त्रीय संगीत की तरह प्रयास या अभ्यास की जरुरत नहीं है। त्योंहारों और विषेष अवसरों पर यह गीत गाये जाते है। इसकी रचना करनेेवाले भी अधिकतर गाॅव के ही लोग होत हैं। हिंदी भाषा एक समृध्द भाषा है। पष्चिमी हिंदी के अंतर्गत खडी बोली, ब्रज, बांगरु कन्नोजी, ई भाषाएॅ आती है अवधी बघेली, छत्तीसगढी आदी मध्य की भाषाएॅं मानी जाती है। भोजपुरी, मैथिली, मगही पूर्व की भाषाएॅ है। उत्तर में कुमाउॅनी है। बोलियों की बहुत सी उप-बोलियाॅ है। सभी बोलि और उप-बोलियों के लोकगीत अपना विषेष महत्व रखते है। लोकगीतों में प्राचीन परंपराएॅ, रितिरिवाज, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन के साथ अपनी संस्कृति दिखाई देती है। ऐसे लोकगीतों में ऋतुसंबंधी गीत, संस्कार गीत और जातीय गीत, शादी के गीत आदि आते है। लोकगीत अधिकत झाॅंझ या ढोलक की मदत से गाए जाते है। लोकगीत गाॅव और इलाकों की बोलियों में गाए जाते है। उस क्षेत्र के लोग उसे समझते है यही उसकी सफलता कहीें जा सकती है। साहित्य की प्रमुख विधाओं में लोकगीतों का स्थान सर्वोपरी है।
लोकगीत की परिभाषा –
लोकगीत लोक के गीत है। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता हैै। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा ा सकता है। लोकगीतों के रचनाकार अपने व्यक्तित् को लोक समर्पित कर देता है।1
डाॅ. वासुदेव शरण अग्रवाल – “लोकगीत किसी संस्कृति के मुॅह बोलते चित्र है।“2
लोकगीतों के लिए लोकप्रचलीत राग –
लोकगीत मन को छू लेने वाले होते है। लोकगीतों के लिए ज्यादातर पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि है। कहरवा, बिरहा, घोबिया आदि गामीण भागों में बहुत पाए जाते है।
लोकगीत अधिकतर देहातों में पाए जाते है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेष के पूरबी और बिहार के पष्चिमी जिलों में गाए जाते है। लोकगीतों के विषय अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से ही अधिक लिये जाते है। ऋतुओं के गीतों में फाग और पावस गीत अधिक पसंद कीये जाते हैं। फाग गीत अधिक तर पुरुषों द्वारा गाये जाते है। यह गीत बसंत पंचमी से लेकर होलि के सबेरे तक यह गीत गाये जाते। अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढी, बघेली, भोजपुरी आदि अनेक बोलियों में फाग संबंधी गीत पाए जाते है। पावस गीत अवधी और भोजपुरी में अधिक प्रचलित होने के बावजूद भी उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में न्यूनाधिक मात्रा में पाए जाते है। संस्कार गीतों में जन्मगीत, मुंडन, जनेउ, विवाह के गीत तो प्रायः सभी क्षेत्रों में पाएॅ जाते है। मृत्यू समय के गीत भी महिलाओं द्वारा गाये जाते है। जातीय गीतों में भी पृथकता पायी जाती है।
HOPE IT IS HELPFUL
MARK ME AS BRAINLIEST
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लोकगीत लोक के गीत है। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता हैै। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा ा सकता है। लोकगीतों के रचनाकार अपने व्यक्तित् को लोक समर्पित कर देता है।1
डाॅ. वासुदेव शरण अग्रवाल – “लोकगीत किसी संस्कृति के मुॅह बोलते चित्र है।“2
लोकगीतों के लिए लोकप्रचलीत राग –
लोकगीत मन को छू लेने वाले होते है। लोकगीतों के लिए ज्यादातर पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि है। कहरवा, बिरहा, घोबिया आदि गामीण भागों में बहुत पाए जाते है।
लोकगीत अधिकतर देहातों में पाए जाते है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेष के पूरबी और बिहार के पष्चिमी जिलों में गाए जाते है। लोकगीतों के विषय अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से ही अधिक लिये जाते है। ऋतुओं के गीतों में फाग और पावस गीत अधिक पसंद कीये जाते हैं। फाग गीत अधिक तर पुरुषों द्वारा गाये जाते है। यह गीत बसंत पंचमी से लेकर होलि के सबेरे तक यह गीत गाये जाते। अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढी, बघेली, भोजपुरी आदि अनेक बोलियों में फाग संबंधी गीत पाए जाते है। पावस गीत अवधी और भोजपुरी में अधिक प्रचलित होने के बावजूद भी उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में न्यूनाधिक मात्रा में पाए जाते है। संस्कार गीतों में जन्मगीत, मुंडन, जनेउ, विवाह के गीत तो प्रायः सभी क्षेत्रों में पाएॅ जाते है। मृत्यू समय के गीत भी महिलाओं द्वारा गाये जाते है। जातीय गीतों में भी पृथकता पायी जाती है।
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