कोई नहीं पराया नामक कविता का केद्रीय भव लीखीए
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कोई नहीं पराया मेरा का केंद्रीय भाव यह है कि हमें आपस में बैर नहीं रखना चाहिए तथा एक , दूसरे के साथ प्रेम से रहना चाहिए ।
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कोई नहीं पराया मेरा, यह कविता गोपालदास नीरज द्वारा लिखी है |
इस कविता में कवि ने संसार में कोई अपना कोई पराया नहीं है इसका वर्णन किया है |
यह अपना है यह पराया है , किसने जाना यह अपना है और पराया है, बेहद कठिन है, जिसको हम अपना मानते है, कुछ ही दिनो मे वह पराया हो जाता है, पराया अपना हो जाता है, काम निकलने के बाद न कोई अपना रहता है ना कोई पराया, यही संसार की रित है |
यह जाती – पाती की भीड़ कुछ नहीं है ना ये धर्म कुछ है , ना यह संसार , ना मेरा घर|
कंही भी रहिए बस अपनी इंसानियत अपने साथ रखिए | बस वो ही हमारी है |
इस संसार में कुछ भी किसी का नहीं है सब पराया है | जितना समय है सबके साथ खुशी से रहना चाहिए|
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