π के इतिहास पर एक लेख तैयार करें एवं भारत के योगदान पर प्रकाश डालें
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दुनिया को शून्य से अवगत कराने वाले महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने ही पाई के सिद्धान्त का प्रतिपादन भी किया था।
आर्यभट्ट प्राचीन समय के सबसे महान खगोलशास्त्रीयों और गणितज्ञों में से एक थे। वें उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित (एलजेबरा) का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘आर्यभटिया’, जो की एक गणित की किताब है, को काव्य छन्दों में लिखा है। इस पुस्तक में दी गयी ज्यादातर जानकारी खगोलशास्त्र और गोलीय त्रिकोणमिति (trignometry) से संबंध रखती है।
‘आर्यभटिया’ में अंकगणित, बीजगणित और त्रिकोणमिति के 33 नियम भी दिए गए हैं। पाई के सिद्धान्त के प्रतिपादक भी आर्यभट्ट ही थे।
हालाँकि, इस अनुपात की आवश्यकता और इससे संबंधित शोध तो बहुत पहले से होते आ रहे थे पर पाई के चिह्न (π) का प्रयोग सबसे पहले 1706 में विलियम जोंस द्वारा किया गयापर 1737 में स्विस गणितज्ञ लियोनार्ड यूलर द्वारा इसके प्रयोग में लाये जाने के बाद से इसे प्रसिद्धि मिली।
3.14 संख्या होने के कारण ‘पाई दिवस’ हर साल 14 मार्च को मनाया जाता है।
गणित के रोचक तत्वों की शृंखला में ‘पाई मिनट’ को भी शामिल कर लिया जाता है जब 14 मार्च को ठीक 1:59:26 बजे पाई के सात दशमलवीय मान प्राप्त हो जाते हैं यानि 3.1415926 हो जाता है तब पूरी दुनियां में पाई के प्रयोग, महत्त्व आदि पर चर्चा परिचर्चा शुरू की जाती है।