काजिम
। का
(क) जैसे एक शीतल, तीव्र बाण रतन के पैर से घुसकर सिर
से निकल गया। मानो उसकी देह के सारे बंधन खुल
गए, सारे अवयव बिखर गए, उसके मस्तिष्क के सारे
परमाणु हवा में उड़ गए। मानो नीचे से धरती निकल
गई, ऊपर से आकाश निकल गया और अब वह
निराधार, निस्पंद, निर्जीव खड़ी है। अवरुद्ध, अश्रु-कंपित
कंठ से बोली-घर से किसी को बुलाऊँ ? यहाँ किससे
सलाह ली जाए? कोई भी तो अपना नहीं है।
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,.............m.mmm
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