कैकेई के चरित्र पर टिप्पणी लिखिए?
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कैकेयी, कैकय देश के राजा की पुत्री थी । वह बड़ी ही रूपवती, गुणवती थी । राजा दशरथ की तीन रानियों में से कैकेयी उनकी प्रिय रानी थी । प्रारम्भ में तो उसके चरित्र में ममतामयी माता के गुण दृष्टिगोचर होते हैं, किन्तु दासी मन्थरा द्वारा उसे स्वार्थ तथा नीचता की ओर प्रेरित किये जाने पर वह सर्वप्रथम तो उसे दूर हट! दूर हट! निर्बोध! रस में विष में मत घोल कहकर डांटती-फटकारती है, परन्तु मन्थरा की विषैली बातों में आकर वह अपने पति दशरथ से अपने प्राणप्रिय पुत्र राम के लिए 14 वर्ष का वनवास तथा अपने सगे पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन मांग बैठती है ।
देवासुर संग्राम में उसने राजा दशरथ के साथ युद्ध में उनका साथ दिया था । जब उनके रथ के पहिये की एक कील निकलने को थी, तो कैकेयी ने कील की जगह अपनी उंगली डालकर पहिये को रथ से अलग होने से रोका था ।
उसके साहसपूर्ण कार्य से प्रसन्न होकर दशरथ ने उस एवज में कैकेयी से दो वर मांगने को कहा था । कैकेयी ने कहा कि समय आने पर वह वर मांग लेगी और उसने राम के राज्याभिषेक का वह समय चुना । वर प्राप्त करने की जिद में वह कोप भवन जाकर प्रतिशोध की भावना से भरकर रूठकर बैठ जाती है ।
दशरथजी के लाख मनाने पर वह अपनी बातों पर अटल रहती है और कठोरतापूर्वक राम को वनवास भेजकर ही शान्ति पाती है, किन्तु अपने पति दशरथ की मृत्यु पर वह अपने कृत्य पर पश्चात्ताप से भर उठती है तथा राम को चित्रकूट के वन से वापस अयोध्या लौटने हेतु निवेदन करती है । अपने पुत्र भरत के असहनीय वचनों को सहती है । राम ने तो उसे अपनी माता ही माना था, किन्तु कैकेयी ने सौतेले व सगे पुत्र में भेद रखा ।
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