काकी का केंद्रीय भाव
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काकी सियाराम शरण गुप्त के द्वारा लिखी गयी एक हृदय स्पर्शी कहानी है जो बाल मनोविज्ञान और बच्चों की मासूमियत को उजागर करती है । जीवन और मरण के रहस्य से अनभिज्ञ श्यामू समझ नहीं पाता कि उसकी मां उसको हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी है । उसका क्रंदन उसकी पीड़ा को दर्शाता है और घर वाले यह कहकर उसे समझाने की कोशिश करते हैं कि वह मामा के घर गयी है और जल्दी ही वापिस आ जाएगी । परन्तु उसे सच्चाई का पाता चलता है और वह अपने पिताजी के एक रूपये की चोरी करके एक पतंग लाता है, और उसपर मांजे की जगह मोती रस्सियां बांधता है जिससे उसकी काकी आसानी से निचे उतर सके.। बाल मन की संवेदनशीलता का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता जब वह पतंग के ऊपर काकी लिखता है जिससे कि उसकी मां अपना नाम पढ़कर तुरंत उसके पास आकश से उतर कर आ जाए । उसके पिता पहले चोरी करने के कारण उसपर बहुत गुस्सा होते हैं और पतंग फाड़ देते हैं परन्तु जब उन्हें सच्चाई का पाता चलता है तो वे द्रवित हो उठते हैं।