काकी कहानी के अंत में सच्चाई का पता लगने पर विश्वेश्वर की मनोदशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए
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उस दिन बड़े सवेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा घर भर में कोहराम मचा हुआ है. उसकी काकी उमा, एक कम्बल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं. और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं. लोग जब उमा को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया.
लोगों के हाथों से छूटकर वह उमा के ऊपर जा गिरा. बोला, “काकी सो रही हैं. उन्हें इस तरह उठाकर कहां लिये जा रहे हो? मैं न जाने दूं.” लोग बड़ी कठिनता से उसे हटा पाए. काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका. एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही संभाले रही.
यद्दपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहां गई हैं. परन्तु असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा न रह सका. आस-पास के अन्य अबोध बालकों के मुंह से ही वह प्रकट हो गया. यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं, ऊपर राम के यहां गई हैं.
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