कि किसी शादी के सिलसिले में नकुड़ की हवला के
व गए हुए थे। औरतें सज-धज कर रतजगा मना रही थी।
आप के शोर में नामी चोर कब सेंध लगाकर हवेली में घुर
पर चोर था बदकिस्मत, जिस कमरे में घुसा, उसमें म
शोर से बचने को, वे अपना कमरा छोड़ दूसरे में जा
जुगराफ़िया दिमाग में बिठलाकर उतरा था, उसे क्या प
खन जगह बदल लेगी। खैर, बुढ़ापे की नींद ठहरी,
ही खुल गई।
ने इतमीनान से पूछा। sala
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आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बार ही दान दी जाती है किन्तु जैसे जैसे समय पलटा वैसे वैसे ये स्थितियां भी परिवर्तित हो गयी .महिलाओं ने इन प्रथाओं के कारण [प्रथाओं ही कहूँगी कुप्रथा नहीं क्योंकि कितने ही घर इन प्रथाओं ने बचाएं भी हैं] बहुत कष्ट भोगा है .हिन्दू व मुस्लिम महिलाओं के अधिकार इस सम्बन्ध में अलग-अलग हैं .
सर्वप्रथम हम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं.पहले मुस्लिम महिलाओं को तलाक के केवल दो अधिकार प्राप्त थे १-पति की नपुन्संकता,२-परपुरुशगमन का झूठा आरोप[लियन]
किन्तु न्यायिक विवाह-विच्छेद [मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम१९३९]द्वारा मुस्लिम महिलाओं को ९ आधार प्राप्त हो गए हैं:
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