Hindi, asked by vp8244253, 1 month ago

किं कृत्वा घृतं पिबेत् ? धनम् ऋणम् ) अन्नम् ) मधुरम्​

Answers

Answered by shishir303
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उचित उत्तरः...

✔ ऋणम्

स्पष्टीकरण ⦂

✎... ऋणम् कृत्वा घृतं पिबेत। (ऋण (कर्ज) लेकर भी घी पियो।

ऋषि चार्वाक कथयति (ऋषि चार्वाक कहते हैं)...

यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।

भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।

त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचराः ।

अर्थात जब तक जियो सुखपूर्वक एवं आनंद पूर्वक जियो। ऋण यानि कर्ज लेकर भी घी पीने से संकोच मत करो यानि सुखों का आनंद लेने के लिए कोई भी उपाय करना पड़े नहीं करने से संकोच मत करो। अगर दूसरों से उधार लेकर भी भौतिक सुख-साधन जुटाने पड़े तो उस बात से हिचको मत और ऋण लेकर भी जीवन को आनंद से जियो।

यह शरीर नश्वर है, क्षण भंगुर है, मिट्टी का बना है। इसको एक न एक दिन नष्ट हो जाना है और नष्ट होने के बाद यह जीवन यह शरीर दुबारा प्राप्त नही होने वाला। इसलिए जीवन के जितने भी सारे आनंद है, इस जीवन में ले डालो। तीनों वेदों के रचयिता धूर्त प्रवृत्ति के मसखरे हैं। उन्होंने लोगों को मूर्ख बनाने के लिए पुनर्जन्म, आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य जैसी बातें फैलाई हैं।

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