(क) काव्यांश में मााँ ककसे कहा कहा गया है ?
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iske liye kavanshya bhi to do
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प्रकृनत का िादूवह हैिो प्रकृनत के रूप में ननत्य कुछ-न-कुछ पररवतनत करता है। प्रकृनत अपने रूप के आकर्णत से
हमें अपनी ओर िादूकी तरह आकर्र्तत करती है। प्रकृनत में र्वर्विता है, अलग-अलग वक्षृ ों की अलग-अलग
घुमावदार बनावट और उनकी छाल और पर्त्तयाँ होना, फूलों का खखलना, कललयों की पंखुड़ियों की मखमली सतह,
बागों में पे़िों पर गाते पक्षी, कलकल करते बहते हुए झरने, कालीन की तरह फैले हुए घास के मैदान आदद प्रकृनत के
िादूहैं
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