( क) कहानी लेखन -
कोविड-19 के अनुभव को लिखिए :-
(1) आपकी ज़िदंगी में कैसे बदलाव आया ?
(2) लोगो की समस्या
(3) आप का सहयोग
(4) आपने इस समय क्या किया?
(5) कोविड से पहले और अब की ज़िदंगी में बदलाव ।
इसे एक कहानी का रूप दीजिए ।
Answers
Explanation:
चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस संक्रमण लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका है.
हर रोज़ मौत के आंकड़े सैकड़ों की संख्या में बढ़ जाते हैं और हज़ारों की संख्या में संक्रमितों के.
पूरी दुनिया में इस वायरस के कारण डर का माहौल है लेकिन इन सबके बीच उम्मीद की बात सिर्फ़ इतनी है कि बहुत से मामलों में लोग ठीक भी हुए हैं.
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक़, कोविड 19 से जहां अभी तक 48 हज़ार लोगों के मौत की पुष्टि हुई है वहीं क़रीब एक लाख 95 हज़ार से अधिक मामलों में लोग ठीक भी हुए हैं.
कोरोना वायरस से संक्रमित हर शख़्स का एक अलग अनुभव है. कुछ में इसके बेहद सामान्य या फिर यूं कहें कि बेहद कम लक्षण नज़र आए थे तो कुछ में यह काफी गंभीर था. और कुछ तो ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें लक्षण वो थे ही नहीं जिनके बारे में स्वास्थ्य विभाग सचेत करता रहा है. लेकिन एक बार ये पता चल जाए कि आप संक्रमित हैं तो अस्पताल जाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता.
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हमने तीन ऐसे लोगों से बात की जिन्हें संक्रमित पाया गया और उन्हें अस्पताल में रहना पड़ा. ये तीनों मामले एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन अस्पताल जाने की इनकी वजह एक ही थी- कोविड19.
'मैं अपने और अपने बच्चे की ज़िंदगी के लिए लड़ रही थी'
कोरोना मरीज़
दक्षिण पूर्व इंग्लैंड के केंट कस्बे के हेर्ने बे इलाक़े में रहने वाली कैरेन मैनरिंग छह महीने की गर्भवती हैं. होने वाला यह बच्चा उनकी चौथी संतान है. कैरेन को खांसी की शिकायत हुई. यह मार्च का दूसरा सप्ताह था. खांसी के सात उन्हें तेज़ बुखार भी आ रहा था और एक दिन सबकुछ बदल गया.
कैरेन बताती हैं, "मैंने हेल्पलाइन पर फ़ोन किया. मेरी सांस उखड़ रही थी. कुछ ही मिनटों में एक एंबुलेंस मेरे घर के दरवाज़े पर खड़ी थी. मैं वाकई सांस नहीं ले पा रही थी इसलिए उन्होंने मुझे सीधे ऑक्सीजन देना शुरू कर दिया."
जब वो अस्पताल पहुंची तो उन्हें कोरोना वायरस संक्रमित पाया गया. उन्हें निमोनिया की भी शिकायत थी और उसके बाद उन्हें अस्पताल के एक कमरे में अलग-थलग रख दिया गया. हफ़्तों के लिए.
वो बताती हैं, "किसी को भी मेरे कमरे में आने और मुझसे मिलने की इजाज़त नहीं थी. वहां मुझे बहुत अकेला महसूस होता था. दो-तीन दिन तक तो मैं बिस्तर से उठी तक नहीं. यहां तक की टॉयलेट के लिए भी नहीं गई. जब उन्हें मेरी बेडशीट बदलनी होती थी तो मैं दूसरी करवट हो जाती थी. लेकिन मैं बिस्तर से नहीं उतरी."
वो कहती हैं "मुझे सांस लेने में कई बार दिक्क़त होती तो भी मुझे अटेंडेंट के पूरी तरह से तैयार होने का इंतज़ार करना पड़ता. मुझे उसी हालत में कुछ देर रहना पड़ता ताकि जो भी मुझे अटेंड करने आ रहा है वो ख़ुद के सारे सुरक्षा आवरण पहन ले. मेरे परिवार वाले मेरे साथ लगातार फ़ोन पर बात करते रहते ताकि मैं शांत बनी रहूं. मैं बहुत डरी हुई थी. मैं मरने जा रही थी और मेरा परिवार कहता कि वो हर चीज़ के लिए तैयार है."
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कैरेन कहती हैं, "मैं हर सांस के लिए जूझ रही थी. ये लड़ाई मेरे और मेरे होने वाले बच्चे के लिए थी."
कैरेन बताती है कि वो उस दिन को कभी नहीं भूल सकतीं जब वो अस्पताल से बाहर निकलीं. वो अपने चेहरे पर ताज़ी और ठंडी हवा को महसूस कर सकती थीं.
वो कहती हैं, "मैंने और मेरे पति गाड़ी में बैठकर घर जा रहे थे. हम दोनों ने मास्क पहन रखा था. लेकिन गाड़ी की खिड़कियां खुली थीं और वो ताज़ी हवा को महसूस कर रही थीं."
कैरेन मानती हैं कि अस्पताल के उन कुछ अकेले गुज़ारे हफ़्तों ने उनकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. उन्हें ये समझ आया कि हर छोटी से छोटी चीज़ का अपना महत्व है.
जैसे हफ़्तों बाद चेहरे को छूने वाली ताज़ी-ठंडी हवा का.