Political Science, asked by sj8783441, 7 months ago

: का
कर्म सफलता का मार्ग
अनुछेद लिखा​

Answers

Answered by parul4747
0

प्यारे दोस्तों आज मैं अपने इस आर्टिकल में कर्म के विषय पर चर्चा करूँगा की कैसे हम अपने कर्मो को बेहतर बना कर एक सफल जीवन जी सकते हैं।

दोस्तों कर्म का सिलसिला जीव आत्मा के आरंभ से अंत तक चलता है । अगर व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं तो व्यक्ति एक सफल जीवन जीता है और जीवन मृत्यु के चक्र से आजाद हो जाता है और अंत में मोक्छ ( आत्मा का परमात्मा से मिलान ) प्राप्त करता है। और अगर किसी व्यक्ति के कर्म बुरे हैं तो व्यक्ति अपने पुरे जीवन में कष्ट पता है और अंत में जीव आत्मा का नाश होता है ।

दोस्तों कर्म उस गाय की तरह होता है जैसे हजारों बछड़ों के बीच गाय अपने बछड़े को पहचान लेती है उसी तरह कर्म भी हमें पहचान लेता है । दोस्तों ये विधाता का विधान है कि जो कर्म जिस व्यक्ति दुआरा होते है तो उस कर्म के फल भी उसे ही भुगतने पड़ते है और उसकी जगह कोई दूसरा उसके कर्मों के फल को नहीं भोग सकता ।

काम , क्रोध , लोभ , मोह और अहंकार :-

काम , क्रोध , लोभ , मोह और अहंकार ये पांच तत्व हैं जो इंसान के स्वभाव और कर्म को प्रभावित करते है । और जो व्यक्ति अपने मन में झांक कर इन पांचों तत्वों पर विजय प्राप्त कर लेता है तो सफलता उससे ज्यादा दूर नहीं रहती । और वो व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर लेता है । दोस्तों ये पांचो तत्व इंसान को बुरी तरह जकड कर रखते है । और ये पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं । इन्ही तत्वों की वजह से हम अपनी सोच को विकसित नहीं कर पाते ।

ज्ञान :-

दोस्तों ज्ञान उस प्रकाश की तरह है जो सत्य और असत्य में भेद बताता है । पर ज्ञान से मेरा अर्थ आज कल के उस किताबी ज्ञान से नहीं है जो डिग्री और डिप्लोमा की प्राप्ति के लिए होता है। ज्ञान से मेरा अभिप्राय उस आत्म ज्ञान से है जो हमारी आत्मा को हमारी इन्द्रीयों ( आँख , नाक , कान , जीभ , जुबान ) और हमारे मन से प्रबल बना दे । जैसे अंधकार में एक लटकी हुई रस्सी भी हमें एक साँप की आकृति दिखती है पर जैसे ही प्रकाश उस रस्सी पर पड़ता है हमें उसकी सत्यता का बोध हो जाता है । उसी प्रकार ज्ञान हमारे कर्मों का मार्ग दर्शन करता है ।

जिज्ञासा :-

दोस्तों मानव जीवन में अब तक जो भी अविष्कार हुए है या जो भी कुछ नया देखने को मिला है वो सब कुछ जिज्ञासा वश हुआ है और आगे भी जिज्ञासा वश ही होगा । जिज्ञासा इंसान के जनम से ही उसमे उत्पन्न हो जाती है । जैसे एक बच्चे में जिज्ञासा भरपूर मात्रा में होती है वो हर चीज जानना और सीखना चाहता है और अपने मन में नयी नयी कल्पनाएं करता है । पर वही बच्चा जब बड़ा हो जाता है और उस पर जिम्मेवारियां अधिक बढ़ जाती है तब उसकी कुछ नया सीखने की जिज्ञासा समाप्त हो जाती है और वो अपने जीवन को एक सीमित सोच से व्यतीत करने लगता है । इसलिए जो महान व्यक्ति अपनी सोच में जिज्ञासा को बनाये रखते हुए कर्म करते है । वो अपने जीवन में हमेशा सफलता का आनंद उठाते हैं ।

प्रेम और उत्साह :-

प्यारे दोस्तों प्रेम और उत्साह भी सफलता का एक महत्पूर्ण पहलु है जब तक हमारे कर्मों में प्रेम और उत्साह की कमी है तब तक हमारे कर्म अधूरे रहते है और तब तक हम अपने कर्मों का आनंद नहीं उठा सकते । तो दोस्तों प्रेम और उत्साह हमारे कर्मों में गतिशीलता बना कर रखते है और हमारे कर्मों को एक निर्धारित उद्देश्य देते हैं।

निरंतर प्रयास :-

दोस्तों जब हमारे कर्मों में निरंतर प्रयास की कमी रहती है तो सफलता हम तक पहुँचते पहुँचते रह जाती है और हमारा विशवास कमजोर हो जाता है । जैसे एक कुए की रस्सी बार बार कुए की मजबूत सिल पर गुजरने से उसकी सिल पर निशान डाल देती है उसी प्रकार निरंतर प्रयास हमारे कर्मों को गतिशीलता प्रदान करते हैं

hope it helps you

Similar questions