कुल एवं जाति में अंतर स्पष्ट कीजिए
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वह इसलिए कि एक ही कुल से कोई ब्राह्मण होता था तो कोई क्षत्रिय, तो कोई वैश्य और कोई शूद्र कर्म करता था। ऐसे में गोत्र से ही उसकी पहचान होती थी। ... पहले ये चार वर्ण रंग पर आधारित थे फिर कर्म पर और बौद्धकाल में ये जाति पर आधारित हो गए। जब से ये जाति पर आधारित हुए हैं हिन्दू समाज का पतन होना शुरू हो गया।
कुल एवं जाति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
कुल और जाति में अंतर इस प्रकार है।
कुल से तात्पर्य एक बड़े परिवार से होता है। कुल एक पूरा परिवार होता है, जिसमें माता-पिता, बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मौसा, मौसी सब शामिल होते हैं। किसी एक परिवार के सभी सदस्यों के समूह को कहा जाता है। यह केवल एक परिवार तक ही सीमित होता है। कुल को हम वंश, खानदान, परिवार भी कह सकते हैं। इसका एक विशेष उपमाम होता है जो परिवार के सभी सदस्य अपने नाम के अंत में लगाते हैं।
जाति शब्द से तात्पर्य किसी विषय-विशेष से संबंधित रखने वाले पूरे समुदाय से होता है। प्राचीन काल में किसी विशेष पेशा करने वाले व्यक्ति को जाति की संज्ञा दी जाती थी और वह उसी पेश को करता था।
जैसे नाई, बढ़ई, कुम्हार, बनिया आदि जातियां।
जाति अनेक परिवारों का समूह होता है जो एक ही विषय से संबंधित होते हैं। जाति की अवधारणा प्राचीन अवधारणा है, जोकि आधुनिक समय में कमजोर पड़ती जा रही है।
जबकि की कुल अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। भले ही पहले जितने बड़े नहीं रहे हो लेकिन आज भी उनका औचित्य है। क्योंकि परिवार छोटे रूप में भी मौजूद हैं।
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कुछ और जानें :
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प्रबल जाति की अवधारणा किसने की ?
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निम्न में से कौन जाति नहीं है।
(अ) भील
(ब) ब्राह्मण
(स) वैश्य
(द) क्षत्रिय