Psychology, asked by mdbelal7667, 4 months ago

कोलाहल की विशेषताओं में किसे शामिल नहीं किया जा सकता ?
(A)
तीव्रता
(B)
पूर्वानुमेयता
(C)
नियंत्रण योग्यता
(D)
क्रमबद्धता​

Answers

Answered by priyadarshinibhowal2
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A) तीव्रता

  • ध्वनि की तीव्रता, जिसे ध्वनिक तीव्रता के रूप में भी जाना जाता है, को उस क्षेत्र के लंबवत दिशा में प्रति इकाई क्षेत्र में ध्वनि तरंगों द्वारा की जाने वाली शक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। तीव्रता की SI इकाई, जिसमें ध्वनि की तीव्रता शामिल है, वाट प्रति वर्ग मीटर है। एक अनुप्रयोग ध्वनि ऊर्जा मात्रा के रूप में श्रोता के स्थान पर हवा में ध्वनि की तीव्रता का शोर माप है।
  • ध्वनि की तीव्रता ध्वनि दबाव के समान भौतिक मात्रा नहीं है। मानव श्रवण ध्वनि दबाव के प्रति संवेदनशील है जो ध्वनि की तीव्रता से संबंधित है। उपभोक्ता ऑडियो इलेक्ट्रॉनिक्स में, स्तर के अंतर को "तीव्रता" अंतर कहा जाता है, लेकिन ध्वनि की तीव्रता एक विशेष रूप से परिभाषित मात्रा है और इसे एक साधारण माइक्रोफोन द्वारा महसूस नहीं किया जा सकता है।
  • ध्वनि की तीव्रता का स्तर एक संदर्भ तीव्रता के सापेक्ष ध्वनि की तीव्रता का एक लघुगणक अभिव्यक्ति है।

अतः विकल्प A सही है।

यहां और जानें

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#SPJ2

Answered by sadiaanam
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Answer:

पूर्वानुमेयता

Explanation:

(क) आलू, प्याज, टमाटर, गाजर, बंदगोभी, फूलगोभी, बैंगन, सीताफल, पालक, लौकी, परवल, शलगम, भिंडी, करेला, टिंडा, मिर्च, लहसुन, अदरक, नींबू, केला, संतरा, अंगूर, सेब, चीकू, पपीता, अमरूद आदि।

(ख) मीठी गाजर ले लो

आलू दस का ढाई

पाँच के पाव अदरक, मिर्ची

एक रूपये गड्डी पालक, मैथी, सरसों आदि।

(ग) मेरे घर के पास हर मंगलवार को बाजार लगता है, वहाँ बहुत शोर होता है। सड़क के दोनों किनारों पर दुकानें लगी होती हैं। दुकान वाले ज़ोर-ज़ोर से बोल-बोलकर ग्राहकों को बुलाते हैं। यह बाजार हर शाम को भी लगता है। लोगों की भीड़ और दुकानदारों की आवाजें सब कुछ मिलाकर बहुत शोर होता है।

मेरे आंगन में एक लंबा, छरहरा पेड़ था। उसकी आदत ऐसी थी कि वह सीधा ऊपर उठता चला जाता। न इधर देखता, न उधर और उसके तने के ऊपरी हिस्से में हरी-भरी डालियां उगतीं। वे डालियां भी रईस बाप की बेटियों की तरह सिर तानकर ऊपर ही देखती रहतीं, नीचे झुकने का नाम न लेतीं। और इन घमंडी डालियों के ऊपर बहुत नाजुक, लंबे से सफेद फूल लगते। इतने सुवासित कि दस दिशाओं में ऐलान करते कि हम खिल गए हैं। हर फूल में चार ही रेशमी पंखुडि़यां और एक लंबी सी, भीतर से बांसुरी जैसी पोली, हल्के पीले रंग की नाजुक डंडी। ये फूल ऊपर ही ऊपर इतराते रहते, हवा में झूलते रहते, नीचे कभी नहीं गिरते। इन्हें तोड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। कोई हेलिकॉप्टर में बैठकर जाए तो शायद उन्हें छू पाए।

इन फूलों का बारिश से बड़ा इश्क था। जैसे ही जोर की बौछार आती, इनका घमंड तोड़कर उन्हें जमीन पर गिरा देती। वह गिरना भी क्या गिरना था- शानदार। जैसे शाही सवारी आई हो। सफेद खुशबूदार फूलों का कालीन बिछ जाता। कहीं पांव रखने की जगह नहीं होती। यह खिलता भी है तो सिर्फ बारिशों में। महाराष्ट्र में इस वृक्ष को गगन-जूही कहते हैं। बड़ा ही सटीक नाम है- आकाश में खिलने वाली जूही।

मेरे आंगन में वही सबसे बड़ा वृक्ष था, सो सांझ के समय छोटे पक्षियों का बसेरा बन गया था। न जाने कहां-कहां से उड़ते हुए आते और दिन भर का लेखा-जोखा एक दूसरे को सुनाते। पता नहीं उनमें क्या चर्चाएं होतीं, पूरा वृक्ष मुखर हो उठता। कभी- कभी उनका शोरगुल असहनीय हो जाता और पढ़ने-लिखने में विघ्न पैदा करता।

वह वृक्ष, वे पक्षी, उनका शोरगुल और धूमिल संधि प्रकाश मेरे संध्याकालीन ध्यान का हिस्सा बन गए थे। मैं नई-नई ओशो से मिली थी। और मेरी पूरी चेतना ध्यान में डूबने लगी थी।

जब कोई ध्यान में उत्सुक होता है तो सबसे पहली बाधा बनते हैं विचार। अचानक विचार घेर लेते हैं, समझ में नहीं आता क्या करें इनका। हम जितना उन्हें हटाने की कोशिश करते हैं, उतना वे ढीठ होकर आक्रमण करते हैं। एक दिन मैंने ओशो की किसी किताब में एक कहानी पढ़ी।

https://brainly.in/question/28641099

#SPJ2

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