History, asked by sahinabbasi72, 4 months ago

किलाकाr लिपि से क्या समझते हो​

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Answered by laughingqueen44
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Explanation:

कीलाक्षर एक प्राचीन लिपि। इसके अक्षर देखने में कील सरीखे जाने पड़ते हैं, इसलिए इस लिपि को इस नाम से पुकारते हैं। गीली मिट्टी की ईटों अथवा पट्टिकाओं पर कठोर कलम या छेनी से टंकित किए जाने के कारण अक्षरों की आकृति स्वाभाविक रूप से कील की सी हो जाया करती थी।

Answered by sanjana8350
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कीलाक्षर एक प्राचीन लिपि। इसके अक्षर देखने में कील सरीखे जाने पड़ते हैं, इसलिए इस लिपि को इस नाम से पुकारते हैं। गीली मिट्टी की ईटों अथवा पट्टिकाओं पर कठोर कलम या छेनी से टंकित किए जाने के कारण अक्षरों की आकृति स्वाभाविक रूप से कील की सी हो जाया करती थी। इस प्रकार के अक्षरों और इनसे बनी लिपि का उपयोग पहले पहल गैर-सामी सुमेरियों ने किया। दक्षिणी बैबीलोनिया अथवा दजलाफरात के मुहानों के द्वाब में बसे प्राचनी सुमेरियों को इस लिपि के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। कालक्रम से भाषाएँ बदलती गईं पर यही प्राचीन सुमेरी लिपि बनी रही। एलामी, बाबुली, असूरी (अथवा असुर), खत्ती, उरार्तू के निवासी, सभी ने बारी-बारी से इस कीलाक्षर लिपि का अपने अपने राज्याधिकारों में उपयोग किया। आज हजारों छोटे-बड़े अभिलेख इस लिपि में लिखे हुए उपलब्ध हैं जिनका संग्रह 7वीं सदी ई. पू. में ही प्राचीन पुराविद् और संग्रहकर्ता असीरिया के राजा असुरबनिपाल ने निनेवे के अपने ग्रंथागार में कर लिया था। निनेवे की खुदाई से संप्राप्त ये अभिलेख अब तुर्की, ईरान, सोवियत, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, शिकागो और पेंसिलवेनिया के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। जलप्रलय की पहली चर्चा करने वाला बाबुली महाकाव्य गिलगमेश भी इन्हीं कीलाक्षरों में अनेक ईटों पर लिखा गया था जिसकी मूल प्रति लेनिनग्राद के एरमिताज संग्रहालय में सुरक्षित हैं। खत्ती रानी ने खत्तियों और मिस्री फराऊ नों के परस्पर युद्ध बंदकर शांति स्थापित करने के लिए अद्वैत के उपासक मिस्री नृपति इख़नातून को अंतर्जातीय विधिस्थापक स्वरूप जो पहला पत्र लिखा, वह इन्हीं कीलाक्षरों में लिखा गया था। बोग़्जाकोई का वह प्रसिद्ध संधिपत्र भी, जिसके द्वारा खत्तियों और मितन्नियों का आपसी युद्ध बंद किया गया था और जिसमें साक्षी स्वरूप भारतीय ऋग्वैदिक देवताओं-इंद्र मित्र, वरुण, नासत्यों-का उल्लेख किया गया है, इन्हीं कीलाक्षरों में लिखा है। कीलाक्षरों के उपयोग की सीमा एलाम से तुर्की तक, अरब से अर्मीनिया तक थी।

कीलाक्षर लिपि

पुस्तक नाम ›हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3

पृष्ठ संख्या› 45

भाषा ›हिन्दी देवनागरी

लेखक› रोजर्स, ई. ए. डब्ल्यू. बज,

संपादक ›सुधाकर पांडेय

प्रकाशक ›नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

मुद्रक ›नागरी मुद्रण वाराणसी

संस्करण ›सन्‌ 1976 ईसवी

स्रोत ›रोजर्स हिस्ट्री ऑव बेबिलोनिया ऐंड असीरिया, छठाँ संस्करण, खंड 1 (1915); ई. ए. डब्ल्यू. बज : राइज़ ऐंड प्रोग्रेस ऑव असीरियालोजी, 1925।

उपलब्ध ›भारतडिस्कवरी पुस्तकालय

कॉपीराइट सूचना› नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

लेख सम्पादक ›भगवतारण उपाध्याय

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