किलाकार लिपि की कोई तीन विशेषताएं बताइए
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इस लिपि का प्रयोग सबसे पहले ३०वीं सदी ईसापूर्व में सुमेर सभ्यता में उभरा और इसकी कुछ पूर्वज लेखन विधियाँ के भावचित्र भी मिलें हैं। समय के साथ-साथ यह चित्रलिपि सरल होती गई और चित्रों से हटकर स्वरों को दर्शाने लगी। जहाँ कांस्य युग के शुरू में कोई १००० कीलाक्षर चिह्न थे यह कांस्य युग के अंत तक घटकर केवल ४०० रह गए।
यह लिपि एक अत्यधिक प्राचीन लिपि है। इसके अक्षर देखने में कील जैसे दिखाई पड़ते हैं, इसलिए इस लिपि को 'कीलाक्षर लिपि' के नाम से पुकारते हैं। गीली मिट्टी की ईटों अथवा पट्टिकाओं पर कठोर कलम या छेनी से टंकित किए जाने के कारण इस लिपि के अक्षरों की आकृति स्वाभाविक रूप से कील की सी हो जाया करती थी।
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