क
लाखो बार गगरिया फूटी, शिकन न आई पनघट पर
लाखो बार कश्तिया डूबी, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो। लौ की आयु घटाने वालो!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपतन नहीं भरा करना।
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nice poem
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लाखो बार गगरिया फूटी, शिकन न आई पनघट पर
लाखो बार कश्तिया डूबी, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो। लौ की आयु घटाने वालो!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपतन नहीं भरा करना।
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