Hindi, asked by simi1850, 7 months ago

काले मेघा पानी दे के लेखक द्वारा अपने विचार परिवर्तन का वर्णन पाठ में है-आपके विचार से पुरातन उचित रीति-रिवाजो का अनुशरण करना चाहिए या नहीं

Answers

Answered by paswanomkar7897
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Explanation:

इनका लोकप्रिय उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ एक सरस और भावप्रवण प्रेम-कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ पर हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद गिरते हुए जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्व-युद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति ‘अंधा युग’ में हुई है। ‘अंधा युग’ गीति-साहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव-मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।

भाषा-शैली – भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। इनके गद्य लेखन में सहजता व आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात को बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, धर्मयुग, के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया। वस्तुत: धर्मवीर भारती का स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है।

पाठ का प्रतिपादय एवं सारांश

प्रतिपादय-‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामथ्र्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।

सारांश -लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –

काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे

गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।

जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे।

पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन हैं।

शब्दार्थ

इंदर सेना – इंद्र के सिपाही। काँदी – कीचड़। अगवानी – स्वागत। जाँधया – कच्छा। जयकारा – नारा, उद्घोष। छज्जा – दीवार से बाहर निकला हुआ छत का भाग। बारजा –छत पर मुँडेर के साथ वाली जगह। समवेत – सामूहिक। गुड़धानी – गुड में मिलाकर बनाया गया लड्डू। धकियाते – धक्का देते। दुमहले – दो मंजिलों वाला। जेठ – जून का महीना। सहेजकर – सँभालकर। तर करना – अच्छी तरह भिगो देना। लोट लगाना – जमीन में लेटना। लथपथ होना – पूरी तरह सराबोर हो जाना। बदन – शरीर। हाँक – जोर की आवाज। मंडली बाँधना – समूह बनाना। टेरना – आवाज लगाना। भुनना – जलना। त्राहिमाम – मुझे बचाओ। दसतया – भयंकर गरमी के दस दिन। पखवारा – पंद्रह दिन का समय। क्षितिज-धरती – आकाश के मिलन का काल्पनिक स्थान। खौलता हुआ – उबलता हुआ, बहुत गर्म।

कथा-विधान – धार्मिक कथाओं का आयोजन। निमम – कठोर। बरबादी – व्यर्थ में नष्ट करना।

याखड – ढोंग, दिखावा। संस्कार – आदत। कायम – स्थापित होना। तरकस में तीर रखना – हमले के लिए तैयार होना। प्राया बसना – प्रिय होना। खान – भंडार। सतिया –स्वास्तिक का निशान। यजीरी – गुड़ और गेहूँ के भुने आटे से बना भुरभुरा खाद्य। हरछठ – जन्माष्टमी के दो दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व। कुल्ही – मिट्टी का छोटा बर्तन। भूजा – भुना हुआ अन्न। अरवा चावल – बिना उबाले धान से निकाला चावल। मुहफुलाना – नाराजगी व्यक्त करना। तमतमान – क्रोध में आना। अध्र्य – जल चढ़ाना।

ढकोसला – दिखावा। किला यस्त होना – हारना। जिदद यर अड़ना – अपनी बात पर अड़ जाना। मदरसा – स्कूल। आचरण – व्यवहार। दज होना – लिखा

Answered by scclpraveen
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Answer:

इनका लोकप्रिय उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ एक सरस और भावप्रवण प्रेम-कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ पर हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद गिरते हुए जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्व-युद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति ‘अंधा युग’ में हुई है। ‘अंधा युग’ गीति-साहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव-मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।

भाषा-शैली – भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। इनके गद्य लेखन में सहजता व आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात को बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, धर्मयुग, के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया। वस्तुत: धर्मवीर भारती का स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है।

पाठ का प्रतिपादय एवं सारांश

प्रतिपादय-‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामथ्र्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।

सारांश -लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –

काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे

गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।

जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे।

पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन हैं।

शब्दार्थ

इंदर सेना – इंद्र के सिपाही। काँदी – कीचड़। अगवानी – स्वागत। जाँधया – कच्छा। जयकारा – नारा, उद्घोष। छज्जा – दीवार से बाहर निकला हुआ छत का भाग। बारजा –छत पर मुँडेर के साथ वाली जगह। समवेत – सामूहिक। गुड़धानी – गुड में मिलाकर बनाया गया लड्डू। धकियाते – धक्का देते। दुमहले – दो मंजिलों वाला। जेठ – जून का महीना। सहेजकर – सँभालकर। तर करना – अच्छी तरह भिगो देना। लोट लगाना – जमीन में लेटना। लथपथ होना – पूरी तरह सराबोर हो जाना। बदन – शरीर। हाँक – जोर की आवाज। मंडली बाँधना – समूह बनाना। टेरना – आवाज लगाना। भुनना – जलना। त्राहिमाम – मुझे बचाओ। दसतया – भयंकर गरमी के दस दिन। पखवारा – पंद्रह दिन का समय। क्षितिज-धरती – आकाश के मिलन का काल्पनिक स्थान। खौलता हुआ – उबलता हुआ, बहुत गर्म।

कथा-विधान – धार्मिक कथाओं का आयोजन। निमम – कठोर। बरबादी – व्यर्थ में नष्ट करना।

याखड – ढोंग, दिखावा। संस्कार – आदत। कायम – स्थापित होना। तरकस में तीर रखना – हमले के लिए तैयार होना। प्राया बसना – प्रिय होना। खान – भंडार। सतिया –स्वास्तिक का निशान। यजीरी – गुड़ और गेहूँ के भुने आटे से बना भुरभुरा खाद्य। हरछठ – जन्माष्टमी के दो दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व। कुल्ही – मिट्टी का छोटा बर्तन। भूजा – भुना हुआ अन्न। अरवा चावल – बिना उबाले धान से निकाला चावल। मुहफुलाना – नाराजगी व्यक्त करना। तमतमान – क्रोध में आना। अध्र्य – जल चढ़ाना।

ढकोसला – दिखावा। किला यस्त होना – हारना। जिदद यर अड़ना – अपनी बात पर अड़ जाना। मदरसा – स्कूल। आचरण – व्यवहार। दज होना – लिखा

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