Hindi, asked by s1271sreeja4825, 1 day ago

क्लास नाइंथ एस्से इन द प्रेजेंट स्टूडेंट्स इन ए डिफरेंट वॉल​

Answers

Answered by Jiya0071
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First of all, an ideal student must have high ambition. Such a student sets a high goal for himself in life. Furthermore, such a student performs well in his academics. This is due to the passion and desire in him to learn. Moreover, such a student also takes part in many extra-curricular activities.

An ideal student is attentive by nature. He clearly understands the lessons taught by his teachers and adults. Furthermore, he is not neglectful of these lessons at the cost of simple pleasures of life.

Another important characteristic of an ideal student is discipline and obedience. A student certainly obeys his parents, teachers, and elders. Furthermore, such a student shows discipline in the day to day activities of life.

An ideal student maintains discipline in all spheres of life, whether in family, educational institution, or society. Consequently, such an individual follows all the social and moral laws. Also, such a student does not get carried away and always exercises self-control.

The ideal student respects the value of time. He shows the utmost punctuality of time. Furthermore, he is never late for his classes or appointments. Most noteworthy, he always does the right thing at the right time.

To be an ideal student, one must certainly be physically and mentally fit. An ideal student regularly exercises. Furthermore, he indulges in playing sport on a regular basis. Moreover, an ideal student is an avid reader of books of knowledge. Therefore, he constantly tries to increase his knowledge.

Answered by XxitzMichAditixX
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Answer:-

गुरू रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। उनके जन्म के बारे में एक दोहा प्रचलित है। चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास। उनके पिता रग्घु तथा माता का नाम घुरविनिया था। उनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता है।[3] रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। वे जूते बनाने का काम किया करते थे औऱ ये उनका व्यवसाय था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। [4]संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे।[4] उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से भगा दिया। रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।

hope it helps ♡

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