Hindi, asked by kshivshankar257, 5 months ago

कालिदास का चरित्र वर्णन कीजिए।​

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Answered by ashupm
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आषाढ़ का एक दिन’ नाटक पात्र योजना की दृष्टि से एक सफल नाटक है। रंगमंच पर कहीं भी किसी भी अंक में चार से अधिक पात्र एकत्र नहीं हो पाते हैं। नाटक के प्रमुख पुरूष पात्र हैं-कालिदास, विलोम, मातुल और निक्षेप और प्रमुख नारी पात्र हैं मल्लिका, अम्बिका, प्रियंगुमंजरी आदि। दन्तुल, रंगिणी, संगिणी, अनुस्वार और अनुनासिक आदि गौण पात्र हैं। आचार्य वररूचि और गुप्त-वंश सम्राट सूच्य पात्र हैं।

कालिदास नाटक के सर्वाधिक प्रमुख पात्र एवं नायक हैं । कालिदास नाटक में आद्यान्त विद्यमान हैं। उनकी काव्य-प्रतिभा तथा व्यक्तित्व का चर्मोत्कर्ष ही नाटक का प्रमुख उद्देश्य है। अतएव नाटक का सारा घटना-क्रम उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता है। महाकवि कालिदास चौथी शताब्दी के वही ऐतिहासिक पात्र हैं जिन्होंने संस्कृत में ऋतुसंहार, मेघदूत कुमार सम्भव, रघुवंश और अभिज्ञानशाकुन्तलम् की रचना की है। गुप्त-वंश के सम्राट चन्द्रगुप्त के नवरत्नों में इन्हीं की गणना थी। राजकुमारी विद्योत्तमा के साथ इन्हीं का विवाह हुआ था। नाटककार ने विद्योत्तमा को प्रियंगुमंजरी के रूप में चित्रित किया है। नाटककार के अनुसार इनका प्रारम्भिक जीवन ग्राम प्रान्तर में बीता। मामा मातुल ने इनका पालन-पोषण किया। इनकी प्रथम रचना ‘ऋतुसंहार’ के साथ इनकी काव्य-प्रतिभा प्रस्फुटित हुई।

प्रकृति प्रेमी – कालिदास को ग्रामप्रान्तर की पर्वत-मालाओं, हरिणशावकों तथा वर्षाऋतु में पर्वत-शिखरों को सहलाती मेघमालाओं से विशेष प्रेम है। वे मेघों के सौन्दर्य में खो जाते हैं, ऐसे दृश्य उनकी भावना को कविता के रूप में परिणत कर देते हैं। मल्लिका के शब्दों में ”मैं जीवन में पहली बार समझ पायी कि क्यों कोई पर्वत-शिखरों को सहलाती मेघ-मालाओं में खो जाता है, क्यों किसी को अपने तन-मन की अपेक्षा आकाश में बनते-मिटते चित्रों का इतना मोह हो रहता है।”

कालिदास का कवि हृदय अत्यन्त कोमल एवं दयापूर्ण है। दन्तुल के बाण से आहत हरिणशावक को वे निःसंकोच भाव से अपनी गोद में उठाकर उसकी प्राण-रक्षा करते हैं। वे उसे दूध पिलाते हैं घृत आदि लगाकर उसका उपचार करते हैं। वे उसके कोमल शरीर को आहत करने वाले की इन शब्दों में भर्त्सना करते हैं- ”न जाने इसके रूई जैसे कोमल शरीर पर उससे बाण छोड़ते बना कैसे?” घायल हरिणशावक को गोद में लेकर वे उसे सांत्वना देते हुए कहते हैं ” हम जिएँगे हरिणशावक। जिएँगे न ? एक बाण से आहत होकर हम प्राण नहीं देंगे। हमारा शरीर कोमल है, तो क्या हुआ ? हम पीड़ा सह सकते हैं। एक बाण प्राण ले सकता है, तो उँगलियों का कोमल स्पर्श प्राण दे भी सकता है।”

कालिदास दयालु होने के साथ-साथ निर्भीक भी हैं। कालिदास का पीछा करने वाले दन्तुल का वर्जन करती हुई मल्लिका उनकी निर्भीकता का परिचय इन शब्दों में देती हैं” ठहरो, राजपुरूष। हरिणशावक के लिए हठ मत करो। तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है, उनके लिए संवेदना का, कालिदास निःशस्त्र होते हुए भी तुम्हारे शस्त्र की चिन्ता नहीं करेंगे।कालिदास नितान्त निर्भीक हैं। वे सशस्त्र राजपुरूष दन्तुल को आहत हरिणशावक नहीं देते हैं और बहुत निर्भीकता से कहते हें” यह हरिणशावक इस पार्वत्य-भूमि की सम्पत्ति है, राजपुरूष ! और इसी पार्वत्य-भूमि के निवासी हम इसके सजातीय हैं। तुम यह सोचकर भूलकर रहे हो कि हम इसे तुम्हारे हाथ में सौंप देंगे।

कालिदास में कविसुलभ सहज स्वाभिमान विद्यमान है। आचार्य वररूचि उन्हें राजसम्मान दिलाने ग्राम-प्रान्तर से उज्जयिनी लेने आते हैं किन्तु वे अपने मामा मातुल से स्पष्ट कह देते हैं ”मैं राजकीय मुद्राओं से क्रीत होने के लिए नहीं हूँ।” वस्तुतः वे ग्राम-प्रान्तर से अनेक सूत्रों से बंधे हैं, वे उसे छोड़कर उज्जयिनी नहीं जाना चाहते। मल्लिका से कहते हैं, ”मैं अनुभव करता हूँ कि यह ग्राम प्रान्तर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से जुड़ा हूँ। उन सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ है , यहाँ की हरियाली है, हरिणों के बच्चे हैं, पशुपाल है।

कालिदास प्रतिक्रियावादी पुरूष हैं । वह सहज स्वाभाविक जीवन न जीकर प्रतिक्रियाओं में जी रहे हैं । अम्बिका और विलोम उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं। वे जानते हैं कि कालिदास कितना भी इन्कार करें उज्जयिनी जाएँगे अवश्य और जाते भी हैं । यहाँ तक कि प्रियंगुमंजरी से विवाह भी करते हैं । इन उपलब्धियों को अपने अभाव पूर्ण जीवन की प्रतिक्रिया बतलाते हुए मल्लिका से कहते हैं ,” मैं नहीं जानता था कि अभाव और भर्त्सना का जीवन व्यतीत करने के बाद प्रतिष्ठा और सम्मान के वातावरण में जाकर मैं कैसा अनुभव करूँगा।अभावपूर्ण जीवन की वह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। सम्भवतः उसमें कहीं उन सबसे प्रतिशोध लेने की भावना भी थी जिन्होंने जब-तब मेरी भर्त्सना की थी, मेरा उपहास उड़ाया था।

कालिदास स्वार्थी एवं आत्मकेन्द्रित व्यक्ति हैं। प्रियंगुमंजरी से विवाह करना एवं कश्मीर का शासक बनना उनके अभावपूर्ण जीवन की प्रतिक्रिया थी। अपनी सफाई देते हुए कालिदास फिर अथ से जीवन शुरू करने की बात करते हैं। “परन्तु इससे आगे भी तो जीवन शेष है। हम फिर अथ से आरंभ कर सकते हैं”। कालिदास की सारी सफाई उस समय थोथी लगने लगती है जब वे यह जानकार कि विलोम से मल्लिका की एक बच्ची है, यह कहकर पीछे हट जाते हैं कि समय अधिक शक्तिशाली है

कालिदास दुर्बल चरित्र के व्यक्ति हैं । वे मल्लिका के प्रति अपने प्रेम को खुलकर स्वीकारने का साहस नहीं दिखाते हैं । काश्मीर जाते हुए गाँव आकर भी मल्लिका से न मिलना उन्हें कमजोर और स्वार्थी सिद्ध करता है।

Answered by ItZzMissKhushi
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आषाढ़ का एक दिन नाटक में कालिदास  

कालिदास संस्कृत के इतिहास प्रसिद्ध महाकवि हैं। उनके इसी ऐतिहासिक चरित्र को आधार बना कर आषाढ़ का एक दिन नाटक की कथा गठित की गयी है। सारी  कथा उन्ही चरित्र गाथा है।  प्रत्येक घटना और प्रत्येक पात्र उनसे प्रभवित है।  अतः वे कथानक के नायक है।  एक महाकवि के रूप में उनका प्रसिद्धि बहुत है।  उनको राजसम्मान भी प्राप्त हैं।  वे मातृगुप्त के रूप में कश्मीर के शाशक बनते हैं। राजकन्या प्रियंगुमंजरी से उनका विवाह होता है ,परन्तु पहले भावुक कवि  हैं और पीछे और कुछ।  वे कश्मीर के शासक के रूप में नहीं रह पाते हैं और अपने गाँव  लौट आते हैं।उनके चरित्र में हम निम्न रूप देख पाते हैं -  

१. अहिंसक ,उदार एवं भावुक व्यक्ति -  

कथा के आरम्भ में ही कालिदास एक भावुक कवि  और प्रेमी के रूप में सामने आते हैं।  वे घायल हरिण शावक को गाँव  में लिए हुए दिखाई पड़ते हैं। मल्लिका के आग्रह पर ही वे उज्जैयनी जाते हैं।  यहाँ नाटक और काव्यों की रचना उनकी प्रसिद्धि को दूर दूर  पहुँचती  हैं।  

२. दुर्बल प्रेमी -  

कालिदास के प्रेम में दुर्बलता है।  वे उज्जयनी में मल्लिका को भूलकर राजकन्या प्रियंगुणमंजरी से विवाह कर लेते हैं।उन्होंने  यह भले ही विवश होकर किया , कश्मीर का शाशक बनने का तो लोभ था ही।  कश्मीर जाते हुए  वे प्रियंगुमंजरी सहित अपने गाँव  में रुकते हैं ,परन्तु मल्लिका से नहीं मिलते हैं।  मल्लिका विलोम को आत्म - समर्पण करने के लिए विवश थी।  उससे उसके एक बच्ची भी हो जाती है।  कालिदास यह सब कुछ जानकार उससे विमुख हो जाते हैं। मल्लिका  की आखों में आंसू  भरे रह जाते हैं।  प्रेम के क्षेत्र में नाटककार कालिदास के चरित्र की गरिमा की रक्षा नहीं कर पाया हैं।  

३. स्वार्थी और आत्म केंद्रित व्यक्ति -  

प्रियंगुमंजरी से विवाह करना और कश्मीर का शासक बनना कालिदास  के अभावपूर्ण जीवन की प्रतिक्रिया थी।  अपनी सफाई देते हुए कालिदास मल्लिका से फिर से जीवन प्रारम्भ करने की बात कहते हैं।  

"परन्तु इससे आगे भी तो जीवन शेष है।  हम फिर अथ  से आरम्भ कर सकते हैं।"  

कालिदास की युपयुक्त  सारी  सफाई उस समय थोथी लगने लगती हैं ,जबकि वे यह जानकार कि विलोम से मल्लिका की बच्ची है ,उससे विमुख हो जाते हैं ,अभी वे अथ से जीवन प्रारम्भ करने की बात कह चुके थे ,समय शक्तिशाली है कहकर पीछे हट जाते हैं।  

"मैंने कहा था।मैं अथ से आरम्भ करना चाहता हूँ।  यह संभवतः इच्छा का समय के साथ द्वन्द था।  परन्तु देख रहा हूँ कि समय अधिक शक्तिशाली है."  

और वे बाहर चले जाते हैं। मल्लिका नेत्रों में आंसू भरे हुए देखते रह जाती है।कालिदास की यह हालत  उनके भावुक प्रेमी व्यक्तित्वापर प्रश्न चिह्न लगा देता है।

कालिदास जन्मजात प्रकृति प्रेमी कवि हैं। ग्राम के प्राकृतिक वातावरण में उनकी कविता का विकास हुआ है। राजकीय लोभ उनको प्रभावित नहीं करता ,परन्तु मल्लिका के आग्रह से वे उज्जयिनी जाते हैं। उज्जयिनी जाकर उनके व्यक्तित्व में परिवर्तन आता है।

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