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कोण केकीग की
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सपे खटीना
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कठिन शब्दार्थ – कदली = केले का वृक्ष। सीप = जल के कीट द्वारा निर्मित कठोर खोल, जिसमें मोती बनता है। भुजंग = सर्प। स्वाति = ज्योतिष में मान्य एक नक्षत्र। तैसोई = वैसा ही। सम्पत्ति = सम्पन्नता के समय, धन होने पर। सगे = अति निकट सम्बन्धी, समान रक्त वाले सम्बन्धी। बनत = बन जाते हैं। बहुरीति = अनेक प्रकार से। बिपति = कसौटी, संकटरूपी परीक्षा। कसे = कसकर देखे गए, परखे गए। मीत = मित्र। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हामरी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि ने संगति के विविध प्रभावों का वर्णन किया है। दूसरे दोहे में विपत्ति को ही सच्चे मित्रों की कसौटी बताया है। व्याख्या – अच्छी और बुरी संगति का व्यक्ति और वस्तु पर अच्छा और बुरा प्रभाव देखने में आता है। स्वाति नक्षत्र के समय में गिरने वाली बादल के जल की बूंद जब केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती है, सीपी में जा गिरती है तो मोती बन जाती है। वही बूंद जब सर्प के मुख में गिरती है तो प्राणघातक विष बन जाती है। स्पष्ट है कि मनुष्य जैसी संगति करेगा उसे वैसा ही (अच्छा या बुरा) फल प्राप्त होगा। कवि रहीम कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति धन सम्पन्न होता है तो बहुत से अपरिचित लोग भी अनेक उपायों से उसके सगे सम्बन्धी बन जाया करते हैं। परन्तु सगेपन और मित्रता की सच्ची परीक्षा तो संकट आने पर होती है। संकट के समय जो मनुष्य का सच्चे मन के साथ देता है वही उसका सच्च मित्र होता है। स्वामी मित्र तो सुख के साथी होते हैं, बुरे दिन आते ही किनारा कर जाते हैं। विशेष – प्रथम दोहे द्वारा कवि ने संदेश दिया है कि मनुष्य को सदा अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए। कुसंग का बुरा फल मिलना अवश्यम्भावी है। कवि ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है। दूसरे दोहे में कवि ने एक उपयोगी मंत्र दिया है। सच्चा मित्र कौन है, कपटी मित्र कौन है? इसकी पहचान दुःख और अभाव …. के दिनों में ही होती है। जो उस समय साथ दे समझ लो वह आपका सच्चा मित्र है। ‘कसौटी’ एक काला पत्थर का टुकड़ा होता है, जिस पर सोने को घिसने से सोने की शुद्धता का पता चलता है। प्रथम दोहे में उदाहरण अलंकार है। ‘संपति सगे’ तथा ‘बनत बहुत बहु’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘विपति-कसौटी’ रूपक अलंकार है। भाषा साहित्यिक ब्रजी है और कथन शैली उपदेशात्मक और संदेशात्मक है।
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