किम् कृत्वा घृतं पिबेत। एक पदेन उत्तरत। ( )वैद्यम
( )ऋणं
( )दक्षा:
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ऋण कृत्वा घृतं पीबेत
जब तक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नही आता है।‘– चार्वाक
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