History, asked by Nitroxenon, 6 months ago

किम` कृतवा घृताम पिबेट​

Answers

Answered by pritinitinjoy
1

Explanation:

‘जब तक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नही आता है।‘– चार्वाक

कर्ज लेकर घी पीने की उकित मशहूर है। सदियो पुराना भोगवादी चार्वाक दर्शन आज आर्थिक नीतियो की नसो मे लहू बनकर दौड़ रहा है। व्यवस्था बिना श्रम के आये धन दीवानी है। हम अपने तक सीमित सोच व मस्ती में यह भूल चुके है कि इसका असर आने वाले दिनो पर कितना भारी है। आमतौर पर कर्ज की जरुरत तब होती है जब उस काम को करने के लिए जरुरी धन नही हो। महर्षि वृहस्पताचार्य के काल की मान्यताओ मे भी ऋण निकृष्ट माना जाता था। आदि ग्रंथो में कर्इ ऐसे प्रसंग है जहां पुरखो के कर्ज के भार ने भावी पीढी को संकट में डाला था। लेकिन भौतिक सुख की भूख ने मूल्य आधारित नैतिक परपाटी को बदल दिया है। हमारे रहनुमा सुख दर्शन के अनुगामी बन चुके है। अब कर्ज का धन लज्जा का नही सम्मान का विषय है। सरकारे जनसरोकार के लिए इस विधा को अचूक मानती है। आज कार्य व्यवहार में सर्वत्र है। शासकीय व निजि क्षेत्र दोनो चपेट में है। निजि क्षेत्र की लाभ हानि व्यकित या लधु समूह तक सीमित है। लेकिन सरकारी फायदा नुकसान का प्रभाव व्यापक है। क्योकि इसमें सभी अंशदायी है।

Similar questions