किा मेंप्रथम आनेपर लेिक केस्वाभाव क्या पररवतशन आया ?
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(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला:
कॉर्न लॉ द्वारा ब्रिटिश सरकार ने मक्का के आयात पर पाबंदी लगाई थी। परिणाम स्वरुप खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान को छूने लगी थी और जनता परेशान हो उठी थी। अतः देश के उद्योगपतियों तथा साधारण नागरिकों ने सरकार को कॉर्न लॉ समाप्त करने पर विवश कर दिया था।
कॉर्न लॉ की समाप्ति के बाद कम कीमत पर खाद्यान्नों का आयात किए जाना लगा। विदेशों से आयातित खाद्यान्न ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्यान्नों से बहुत सस्ते थे । फल स्वरुप ब्रिटेन के किसान आयातित खाद्य पदार्थों की कीमतों का मुकाबला नहीं कर सके । जिससे उनकी स्थिति दयनीय हो गई। धीरे धीरे किसानों ने खेती बंद कर दी । हजारों लोग बेरोज़गार हो गए ।गांव के गांव वीरान हो गए। गरीब किसान शहरों तथा अन्य देशों में जाकर बसने लगे।
(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना :
अफ्रीका में जमीन की कोई कमी नहीं थी। वहां की जनसंख्या अपेक्षाकृत कम थी । सदियों से वहां के लोगों का जीवन कृषि और पालतू पशुओं के सहारे चल रहा था। वहां के लोगों को वेतन लेने या देने का अर्थ ही मालूम नहीं था। 19वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका महाद्वीप में प्रवेश किया। वे अफ्रीका वासियों को वेतन पर लगाना चाहती थी परंतु वहां के लोग वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे।
दुर्भाग्यवश 1880 के दशक में एशियाई देशों से आए जानवरों द्वारा रिंडरपेस्ट नामक बीमारी फैल गई। यह बीमारी जंगल की आग की भांति अफ्रीका महाद्वीप में फैलने लगी । 1892 तक यह बीमारी अटलांटिक तक जा पहुंची।
रिंडरपेस्ट ने अफ्रीका महाद्वीप के 90% मवेशियों को मार डाला। पशुओं के मारे जाने से अफ्रीका वासियों की रोजी-रोटी के साधन समाप्त हो गए। उन्हें वेतन पर काम करने को विवश करने के लिए वहां के बागा़न स्वामियों, खान मालिकों तथा औपनिवेशिक सरकारों ने उनके शेष बचे पशुओं पर भी अधिकार कर लिया। इससे उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका पर अधिकार जमाने का सुनहरा अवसर मिल गया।
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत:
प्रथम विश्व युद्ध एक विनाशकारी युद्ध था। इसमें हजारों सैनिक तथा आम नागरिक मारे गए या घायल हुए । मारे गए लोगों में अधिकतर कामकाजी उम्र के पुरुष थे। परिणाम स्वरुप यूरोप में कामकाज करने वाले लोगों ने भारी कमी आ गई। परिवार के कामकाजी सदस्य कम हो जाने से परिवारों की आय कम हो गई । अतः औरतों को वे काम करने पड़े जो केवल पुरुष ही करते थे।
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव :
वैश्वीकरण के कारण विश्वव्यापी आर्थिक महा मंडी का प्रभाव भारत पर भी पड़ा जिसका वर्णन प्रकार से है :
(क) औपनिवेशिक भारतीय व्यवस्था कृषि वस्तुओं के निर्यात तथा तैयार माल के आयात पर आधारित थी। महामंदी के कारण यह व्यापार घटकर लगभग आधा रह गया।
(ख) भारत में कृषि उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट आई । उदाहरण के लिए गेहूं की कीमत में लाभ 50% की कमी हो गई।
(ग) बंगाल में कच्चे जूट का उत्पादन होता था। जिससे टाट तथा बोरियां बनाई जाती थी । विश्व महामंदी के कारण टाट का निर्यात बंद हो गया । इससे पटसन की कीमतों में 60 % से भी अधिक की गिरावट आई। कई किसानों ने खुशहाल जीवन तथा अधिक लाभ के लिए कर्जे़ ले रखे थे। उपज का उचित मूल्य न मिल पाने के कारण वे कर्ज में डूब गए और उनकी ज़मीन सूदखोरों के पास चली गई। उनके घर में जो भी गहने जेवर थे वे सब बिक गए। इससे ग्रामीण भारत में असंतोष तथा उथल-पुथल पैदा हो गई।
(घ) भारत के शहरी क्षेत्र में महामंदी अधिक दु:खदायी नहीं थी । कीमतें गिर जाने के बावजूद बहुत से लोगों के जीवन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा। इनमें वे लोग शामिल थे जिनकी आय निश्चित थी।
(ङ) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानांतरित करने का फैसला :
बहुराष्ट्रीय कंपनियों से अभिप्राय ऐसी कंपनियों से है जिनका जाल एक से अधिक देशों में फैला है । ऐसी कंपनी सर्वप्रथम 1920 के दशक में स्थापित हुई। उनकी समस्या यह थी कि यह जिस देश में अपने उत्पादन को बेचना चाहती थी वहां उन्हें भारी आयात शुल्क देना पड़ता था जिससे इनकी उत्पाद महंगे हो जाते थे । अतः इन कंपनियों ने अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानांतरित करने का फैसला किया। एशियाई देश विकासशील देश थे और वहां श्रम बहुत ही सस्ता था। इस प्रकार वे अपना सामान कम लागत पर तैयार करने लगी और अपने माल को कम कीमत पर बेचने लगी । इससे उनके उत्पाद धड़ाधड़ बिकने लगे और विश्व बाजार पर उनका नियंत्रण स्थापित हो गया।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीप के बारे में चुने।
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