क. मीरा किस प्रकार कृष्ण-भक्ति में लीन हो जाती हैं?
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पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृन्दावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था। इस सभी परिस्तिथियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धत्ति सवर्मान्य बनी।
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मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ति की और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुई थी।
मीरा सामान्य भक्तों से अलग थीं और भक्ति के सांस्थानिक और सांप्रदायिक रूपों के साथ उनके संबंध सहज नहीं थे, इसकी पुष्टि मध्यकालीन वल्लभ साम्प्रदायिक चरित्र आख्यानों में आए मीरा विषयक प्रसंगों से होती है । मध्यकाल में ब्रज मंडल और उससे बाहर कृष्ण भक्ति के वल्लभ सम्प्रदाय, राधावल्लभ सम्प्रदाय चैतन्य सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय आदि कई सांस्थानिक रूप अस्तित्व में आ गए थे ।
मीरा के प्रिय लौकिक व्यक्ति हों या अलौकिक गिरधर गोपाल किंतु मीरा का प्रेम प्रेम की पीर सच्ची है । मीरा ने तो माया के साधनों को , सुख ऐश्वर्य की चीजों को , खुद ही छोड़ा था और मन को एकनिष्ठ कर प्रिय के चरणों में लगा दिया ।