Hindi, asked by kajalkumari73239000, 8 days ago

किन बातों को सोच कर लेखक के भीतर कांटे जैसे उगने लगते हैं​

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Answered by franktheruler
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लेखक द्वारा अपने बीते हुए जीवन में किए जाने वाले कामों उन पर मिलने वाले मेहनताने को याद कर लेखक के भीतर कांटे जैसे उगने लगते है

  • लेखक ओमप्रकाश ने " जूठन " शीर्षक से अपनी आत्म कथा लिखी है। इसमें लेखक ने अपने आप पर बचपन में किए गए अत्याचारों का वर्णन किया है।
  • लेखक दस से पंद्रह मवेशियों की सेवा किया करते थे व गोबर की दुर्गंध हटाने के एवज में उन्हें केवल पांच सेर अनाज मिला करता था। वह भी दो जानवरों के पीछे फसल तैयार होने के समय मिलता था। दोपहर के समय में लेखक को जूठन दी जाती थी या बची खुची आटे में भूसा मिलाई गई रोटी मिलती थी।
  • किसी का शादी ब्याह हो तो उनका निवारा जूठी पत्तलों से होता था। पत्तलों में बचे हुए पूरी के टुकड़े , आधा मिठाई का टुकड़ा व थोड़ी बहुत सब्जी पाकर भवन वे खुश हो जाया करते थे।
  • इस प्रकार लेखक का जीवन विभत्स था, जूठी पत्तलों को लोग देखना भी पसंद नहीं करते व लेखक को उन्हीं जूठी पत्तलों पर गुजारा करना पड़ता था।

#SPJ1

Answered by syed2020ashaels
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Answer:

लेखक द्वारा अपने बीते हुए जीवन में किए जाने वाले कामों व उन पर मिलने वाले मेहनताने को याद कर लेखक के भीतर कांटे जैसे उगने लगते है।

Explanation:

ओमप्रकाश यांनी त्यांच्या जीवनावर ‘जुथान’ नावाचे पुस्तक लिहिले आहे. त्यात लेखकाने लहानपणी त्यांच्यावर झालेल्या अत्याचाराचे वर्णन केले आहे. लेखक दहा ते पंधरा गायींना चारा द्यायचा आणि खताचा वास दूर करण्यासाठी त्यांना फक्त पाच मुंडे द्यायचा. कापणी करताना दोन जनावरांच्या मागेही तो भेटला. दुपारच्या वेळी लेखक काही कोंबडीच्या तुकड्यांसोबत रोटी खात होता. किसी का शादी बाय हो तो उनका निवारा जुठी पटलों से होता था. पुरी के तुकड्याचे तुकडे, मिठाई आणि थोडी उरलेली भाजी शिजवून द्यायची तेव्हा भानला आनंद व्हायचा. अशा प्रकारे लेखकाचे जीवन दयनीय होते, जुथीला पट्टल आणि स्वतः लेखकाला पाहणे देखील आवडत नाही. बर्याच लोकांना हातांशिवाय जगावे लागते, म्हणून ते लिहिण्यासारख्या गोष्टी करण्यासाठी अक्षरांचा वापर करतात.किसी का शादी ब्याह हो तो उनका निवारा जूठी पत्तलों से होता था। पत्तलों में बचे हुए पूरी के टुकड़े , आधा मिठाई का टुकड़ा व थोड़ी बहुत सब्जी पाकर भवन वे खुश हो जाया करते थे।

इस प्रकार लेखक का जीवन विभत्स था, जूठी पत्तलों को लोग देखना भी पसंद नहीं करते व लेखक को उन्हीं जूठी पत्तलों पर गुजारा करना पड़ता था।

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