किन्ही एक पर निबंध लिखें ।
(क) दहेज प्रथा - समाज के लिए कलंक
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Answer:
दहेज प्रथा: सामाजिक कलंक पर निबन्ध | Essay on Dowry System : A Social Stigma in Hindi!
प्रस्तावना:
आज भारतीय समाज र्मे सबसे बड़ा सामाजिक कलंक है- दहेज प्रथा । दहेज जैसी कुप्रथा न केवल समाज बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास के मार्ग में अइवरोधक है । समाज इस कुप्रथा के कारण जर्जर होता जा रहा है ।
यद्यपि प्राचीन समय से ही पिता द्वारा अपनी कन्या को उपहार, इत्यादि देने का प्रचलन था तथापि इसने कुरूपता धारण नहीं की थी, किन्तु शनै-शनै: यह विकृत स्वरूप धारण करती गई और दहेज-प्रथा जैसे कलंकित नाम से ‘अलंकृत’ हो गई ।
चिन्तनात्मक विकास:
विज्ञान ने समस्त विश्व को सीमित कर दिया है । इतनी विशाल दुनिया सिमट कर रह गई है । हम इसके सहारे न जाने कहाँ-कहाँ तक पहुँच गए हैं और दूसरी ओर हम घिसी-पिटी परम्परा पर ही जमकर बैठ गए हैं । कहाँ तक इसमें औचित्य है ।
यह एक प्रकार से चिन्तनीय विषय है । इस प्रथा का अभाव गाँवों में ही नहीं अपितु नगरों र्मे भी है । सुसंस्कृत एयै सुशिक्षित नगरवासियों में भी दहेज रूप में धन-लोलुपता बढ़ती चली जा रही है । लड़के की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के आधार पर यह दहेज लड़की वालों से माँगा जाता है । यदि लड़का कहै। अच्छे क्या ऊँचे पद पर है तो दहेज की मात्रा की माँग और अधिक बढ़ जाती है ।
लड़की वाले की स्थिति के बिषय र्मे ये कभी विचार ही नहीं करते । परिणामस्वरूप लड़की के माता-पिता दहेज जुटाने में कर्जदार भई। हो जाते हैं । लड़कियों द्वारा विवाह से पूर्व ही दहेज न देने के कारण आत्मक्ष्मायें कर जी जाती हैं । अथवा नवविवाहिता द्वारा कम दहेज देने या दहेज न देने के कारण आत्महत्यार्ये कर ली जाती हैं । आज प्रतिदिन ऐसी घटनाऐं देखने एवं सुनने र्मे आती हैं ।
दहेज की माँग से तो ऐसा मालूम होता है कि यह विवाह न होकर लड़के का सौदा हो रहा है । हमारे देश मे हर जगह हर वर्ग र्मे दहेज प्रथा का विकृत स्वरूप व्याप्त है । यद्यपि देश में समाजसुधारको एब धर्मतत्ववेत्ताओं की कमी नहीं रही है तथापि यह ‘कुप्रथा’ दिन पर दिन विकट रूप धारण करती जा रही हैं-यह बडे खेद का विषय है ।
उपसंहार:
दहेज प्रथा जैसे सामाजिक कलंक को दूर करने के लिए अनेक संगठन कार्यरत हैं । अनेक अधिनियम बनाये गए हैं किन्तु कोई भी प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि स्पयं हमारे देश के नवयुवक जागृत न हो और लोगों की खोखली मानसिकता परिवर्तित, परिमार्जित एवं परिवर्धित न हो ।
”अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, चल में है दूध और अस्त्रों में पानी ।” हमारा भारत देश हमेशा से ही ऋषियों-मुनियों एवं योगियों की जन्मभूमि रहा है । धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह देश एक ओर सुसम्पन्न है तो दूसरी ओर हमारे भारतीय समाज में स्वतन्त्रता से पूर्व एवं पश्चात् भी अनेक रूढियाँ, कुप्रथाएं, अंधविश्वास, एवं कुरीतियाँ इत्यादि विद्यमान हैं ।
ADVERTISEMENTS:
ये सभी कुप्रथाएं राष्ट्र एवं समाज की उन्नति में घातक सिद्ध हुई हैं । इनसे विकास में एक प्रकार का अवरोध उपस्थित हो जाता है । दहेज की कुप्रथा समाज तथा संस्कृति का एक कलंक हैं-लछन है । इस प्रकार के लंछिन को हम ‘कोड’ नाम से अभिहित करें तो अतिशयोक्ति न होगी । समुन्नत एवं सुसम्पन्न देश में ऐसी कुप्रथा लज्जाजनक एवं घृणास्पद है । प्रत्येक देश एवं समाज में विवाह के अवसर पर वर-वधू को कुछ उपहार-स्वरूप देने की प्रथा विद्यमान है ।
भारत में यह प्रथा आज से ही नहीं अपितु बहुत पहले समय से ही चली आ रही है, किन्तु तत्कालीन स्वरूप में और अद्यतन स्वरूप में आकाश-पाताल का अन्तर दृष्टिगत होता है । भारतीय शास्त्रों में कन्योदान’ का महत्व विशेषरूपेण वर्णित किया गया है, उस समय ‘दहेज’ का एक स्वस्थ रूप था ।
मनुस्मृति जैसे हमारे पौराणिक गन्ध में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया गया है । जिसके अन्तर्गत ब्रह्म विवाह को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । वास्तव में ब्रह्म विवाह में यइा के माध्यम से कटक के समक्ष वर एवं कन्या को आशीर्वाद देकर पवित्र रिश्ते में बांध दिया जाता था ।
कन्या के पिता द्वारा इस शुभ अवसर पर कुछ आभूषण दक्षिणा स्वरूप वर को दिये जाते थे । इस विवाह में कन्या का पिता विद्वान, शील, सम्पन्न और कुलीन वर को स्वयं बुलाता था और उसका विधिवत सत्कार करके उसे वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कन्या दक्षिणा सहित प्रदान करता था ।
स्मृतियों में इस विवाह सम्बंध को सर्वोत्तम माना गया है । ग्वैदिक काल में दहेज का वर्णन कहीं नहीं मिलता है । इस काल में दामाद द्वारा श्वसुर को द्रव्य देने का उल्लेख है । मनुस्मृति में इस विवाह के सम्बंध में कहा गया हे कि इस विवाह में कन्या के माता-पिता, पवित्र धर्म के लक्ष्य से ऋषि से एक गाय तथा बैल अथवा दो जोडे प्राप्त कर अपनी कन्या ऋषि को, पत्नी के रूप में सौंप देते थे ।