Hindi, asked by reematalukdar12, 5 months ago

(क) नाम के चक्कर में पड़कर लोग क्या भूल गए हैं? टोपी ने ऐसा क्या कह दिया कि रामदुलारी की आत्मा गनगना उठी?​

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Answered by Anonymous
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प्रस्तुत पाठ में लेखक टोपी की कहानी पाठकों को सुनाना चाहते हैं। इसलिए लेखक कहता है कि वह इफ़्फ़न की कहानी पूरी नहीं सुनाएगा बल्कि केवल उतनी ही सुनाएगा जितनी टोपी की कहानी के लिए उसे जरुरी लग रही है। इफ़्फ़न टोपी की कहानी का एक ऐसा हिस्सा है जिसके बिना शायद टोपी की कहानी अधूरी है। ये दोनों लेखक की कहानी के दो चरित्र हैं। एक का नाम बलभद्र नारायण शुक्ला है और दूसरे का नाम सय्यद जरगाम मुरतुज़ा। एक को सभी प्यार से टोपी कह कर पुकारते हैं और दूसरे को इफ़्फ़न।

इफ़्फ़न की दादी पूरब की रहने वाली थी। नौ या दस साल की थी जब उनकी शादी हुई और वह लखनऊ आ गई, परन्तु जब तक ज़िंदा रही, वह पूरब की ही भाषा बोलती रही। लखनाऊ की उर्दू तो उनके लिए ससुराल की भाषा थी। उन्होंने तो मायके की भाषा को ही गले लगाए रखा था क्योंकि उनकी इस भाषा के सिवा उनके आसपास कोई ऐसा नहीं था जो उनके दिल की बात समझ पाता। जब उनके बेटे की शादी के दिन आए तो गाने बाजाने के लिए उनका दिल तड़पने लगा, परन्तु इस्लाम के आचार्यों के घर गाना-बजाना भला कैसे हो सकता था? बेचारी का दिल उदास हो गया। लेकिन इफ़्फ़न के जन्म के छठे दिन के स्नान/पूजन/उत्सव पर उन्होंने जी भरकर उत्सव मना लिया था।

लेखक कहता है कि इफ़्फ़न की दादी किसी इस्लामी आचार्य की बेटी नहीं थी बल्कि एक जमींदार की बेटी थी। दूध-घी खाती हुई बड़ी हुई थी परन्तु लखनऊ आ कर वह उस दही के लिए तरस गई थी। जब भी वह अपने मायके जाती तो जितना उसका मन होता, जी भर के खा लेती। क्योंकि लखनऊ वापिस आते ही उन्हें फिर मौलविन बन जाना पड़ता।

इफ़्फ़न को अपनी दादी से बहुत ज्यादा प्यार था। प्यार तो उसे अपने अब्बू, अम्मी, बड़ी बहन और छोटी बहन नुज़हत से भी था परन्तु दादी से वह सबसे ज्यादा प्यार किया करता था। अम्मी तो कभी-कभार इफ़्फ़न को डाँट देती थी और कभी-कभी तो मार भी दिया करती थी। बड़ी बहन भी अम्मी की ही तरह कभी-कभी डाँटती और मारती थी। अब्बू भी कभी-कभार घर को न्यायालय समझकर अपना फैसला सुनाने लगते थे। नुजहत को जब भी मौका मिलता वह उसकी कापियों पर तस्वीरें बनाने लगती थी। बस एक दादी ही थी जिन्होंने कभी भी किसी बात पर उसका दिल नहीं दुखाया था। वह रात को भी उसे बहराम डाकू, अनार परी, बारह बुर्ज, अमीर हमज़ा, गुलबकावली, हातिमताई, पंच फुल्ला रानी की कहानियाँ सुनाया करती थी।

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