क) निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
जीवन में देह है, जीवन में आत्मा है। देह है नाशशील। आत्मा है शाश्वत तो उसे हिलना-झुकना नहीं
है और देह को निरंतर हिलना-झुकना ही है, नहीं तो हम हो जाएगे रामलीला के रावण की तरह-जो बाँस
की खपच्चियों पर खड़ा रहता है, जो न हिलता है न झुकता है। हमारे विचार लचीले हों-परिस्थितियों के
साथ में वे समन्वय साधते चले, पर हमारे आदर्श स्थिर हों
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jivan me hamesha dherya banaye rakhiye
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Explanation:
प्रसंग:-
प्रस्तूत गद्यंश मे क्रियाशील रहने कि बात कि गई है।
व्याख्या:-
बताया गाय है कि हमे जीवन मे खाली नही रुकना चाहिये।
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