कानून का शासन क्या है समझाइए
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विधि के शासन का अभिप्राय देश में कानूनी समानता का होना है। विधि के शासन के अनुसार किसी व्यक्ति को कानून के उल्लंघन के लिए दंडित किया जा सकता है अन्य किसी बात के लिए नहीं। विधि के शासन की तीसरी शर्त यह है कि संविधान कि व्याख्या अथवा अन्य किसी भी कानूनी विषय पर न्यायाधीशों निर्णय अंतिम व सर्वमान्य होगा।
भारत में कानून के शासन का विश्लेषण
वर्षों से भारत आतंकवाद से पीडि़त है, जिसे दृढ़ता से लड़ने की जरूरत है। हालांकि, आतंकवाद-रोधी कानूनों में ऐसे प्रावधान नहीं होने चाहिए जो मानव अधिकारों को क्षीण करते हों। एक कानून जो संदिग्ध आतंकवादियों की हत्या की अनुमति देता है या कार्यकारी शत्तिफ़यों द्वारा सुनवाई के बिना निरोध को वैध बनाता है, वह कानून के शासन का विनाशकारी रूप है।
इसके अतिरिक्त नकली मुठभेड़ों और मुठभेड़ विशेषज्ञों (encounter specialists) का कानून के शासन के आधार पर सरकार में कोई स्थान नहीं है।
जब शासन कानून कायम रखने में विफल हो जाता है तो यह लोकतंत्र, समानता और मौलिक अधिकारों के लिए खतरे की तरह है, जो संविधान के आधारभूत सिद्धांत हैं। फिर भी भारत में कहीं से कोई असंतोष के स्वर नहीं सुनाई देते, जो कि लोकतंत्र के लिए जरूरी है। अकसर प्रक्रियाओं, प्रणालियों और प्रभावी लोगों की कमी के कारण कानून अपना काम सही ढंग से नहीं कर पाता है और यह भारत के शासन संरचना के लिए गंभीर समस्या का कारण बनता है।
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कानून का शासन की परिभाषा इस प्रकार है -
- किसी भी लोकतांत्रिक देश में, पूरी शासन प्रणाली "कानून के शासन" पर आधारित होती है। यह "कानून का शासन" राष्ट्रीय संविधान द्वारा स्थापित कानूनों पर आधारित है।
- इस "कानून के शासन" के अनुसार, लोकतांत्रिक राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक कानून व्यवस्था के सामने समान है, और कोई भी किसी भी तरह से इस कानून व्यवस्था को अस्वीकार नहीं कर सकता है।
- छोटे और सरल शब्दों में, "कानून का शासन" राष्ट्र पर कानून व्यवस्था के कार्यान्वयन द्वारा एक शासी प्रक्रिया है।