* किनारों पर baithkar nadi (river) को पार न (no) किया जा सकता
क्या अपने सपनों को साकार करने के लिए सिर्फ सपने
देखना काफी हैं? तर्कपूर्ण answer देकर लेखनीबंध likho
Answers
किनारे पर बैठकर नदी को पार नही किया जा सकता
खाली सपने देखने से सपने पूरे नही होते, कर्म भी करना पड़ता है
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
इन पंक्तियों का अर्थ है कि अगर मोती को पाना है तो बिना डरे गहरे पानी में छलांग लगानी ही पड़ेगी, किनारों पर बैठ कर हमें सिर्फ कंकड़ पत्थर ही मिलेंगे, मोती नही।
हमारे सपने भी मोती की तरह हैं, जिन्हे पाने के लिये हमें संघर्ष, बाधा और कठिनाई रूपी नदी में बिना डरे छलांग लगानी ही पड़ेगी।
मान लीजिये हम नदी के एक किनारे पर खड़े हैं और नदी के दूसरे किनारे हमारी मंजिल है तो उस मंजिल को पाने के लिये दूसरे किनारे तक पहुंचने के लिये हमें नदी को पार करना ही पड़ेगा। किनारा खुद चलकर हमारे पास नही आने वाला।
हम सब सपने देखते हैं और देखते रहते हैं, बहुत से लोगों की केवल सपने देखने की आदत होती है। उनमें अपने सपनों को पूरा करने की कोई योजना, इच्छाशक्ति और सामर्थ्य नही होती।
कुछ लोग न केवल सपने देखते हैं बल्कि उनमें अपने सपनों को पूरा करने की एक तड़प और लगन होती है, ये लोग अपने सपनों के पूरा करने के लिये हर प्रयास करते हैं और ऐसे लोग ही अपने सपनों को पूरा कर पाते हैं।
सपने रूपी मंजिल पर केवल एक ही वाहन पर बैठ कर पहुंचा जा सकता है। और वो वाहन है हमारा “कर्म”। अगर हम ‘कर्म’ करेंगे तो ही तो अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। बैठ कर सपने देखते रहने से सपने पूरे नही होते।
इस ‘कर्म’ रूपी वाहन के ईधन हैं, हमारे प्रयास, संकल्प, इच्छाशक्ति, परिश्रम तथा लगन। ये ईधन हम अपने कर्म रूपी वाहन में डालते रहेंगे तो हमारा वाहन निरंतर चलता रहेगा और एक दिन सपनों की मंजिल तक पहुंच जायेगा।