History, asked by souravsharma4576, 8 months ago

कौन सा प्रधिकरण दरों की अनुसूची प्रकाशित करता है​

Answers

Answered by aditi457211
2

Answer:

भारत सरकार व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ), कंपनियां, फर्मों, सहकारी समितियों और ट्रस्टों (जिन्हें व्यक्तियों और लोगों के समूह के रूप में पहचान प्राप्त है) और किसी भी की अन्य कृत्रिम व्यक्ति के कर योग्य आय पर एक आयकर लगाता है। कर का भार प्रत्येक व्यक्ति पर अलग होता है। यह उदग्रहण भारतीय आय कर अधिनियम, 1961 द्वारा शासित किया जाता है। भारतीय आयकर विभाग, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा संचालित है और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग का हिस्सा है।

please mark me as brainleast

Answered by 16MIS3472
1

भारत सरकार व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ), कंपनियां, फर्मों, सहकारी समितियों और ट्रस्टों (जिन्हें व्यक्तियों और लोगों के समूह के रूप में पहचान प्राप्त है) और किसी भी की अन्य कृत्रिम व्यक्ति के कर योग्य आय पर एक आयकर लगाता है। कर का भार प्रत्येक व्यक्ति पर अलग होता है। यह उदग्रहण भारतीय आय कर अधिनियम, 1961 द्वारा शासित किया जाता है। भारतीय आयकर विभाग, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा संचालित है और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग का हिस्सा है।

भारतीय आयकर के भाग

आयकर प्रत्येक व्यक्ति की गतवर्ष में अर्जित की गयी आय पर लगने वाला कर है। 'व्यक्ति' में : एक व्यक्ति, हिन्दू अविभाजित परिवार, व्यक्तियों का संघ, व्यक्तियों का समूह, एक फर्म, कम्पनी आदि शामिल हैं। आयकर सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष कर है। भारत का आयकर अधिनियम निम्न तत्त्वों/भागों से मिलकर बना है-

(१) आयकर अधिनियम, 1961

(२) वित्त अधिनियम (Finance Act)

(३) आयकर नियमावली (Income-tax Rule)

(४) परिपत्र/अधिसूचना (Circulars and Notification)

(५) न्यायालय के विधायी निर्णय (Case Law)

आयकर अधिनियम, 1961

भारत में आयकर, आयकर अधिनियम, 1961 द्वारा लगाया जाता है। इस पुस्तक में हम इसे संक्षिप्त में ‘अधिनियम’ कहेंगे। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1962 से प्रभाव में आया। इस अधिनियम में कुल 298 धाराएं तथा XIV अनुसूचियां शामिल हैं। संसद द्वारा पारित वित्त अधिनियम द्वारा इसमें सम्वर्धन और विलोपन के साथ प्रतिवर्ष परिवर्तित होता है। आयकर अधिनियम 1961 को सही ढंग से संचालित करने के लिए अधिकारियों को उपयुक्त अधिकार दिये गये हैं।

वित्त अधिनियम

प्रत्येक वर्ष वित्तमन्त्री द्वारा संसद में आय -व्यय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। भाग A में सरकार के वित्तीय क्षेत्र में प्रस्तावित नीतियों को दर्शाया जाता है। भाग B में प्रस्तावित कर बजट का वर्णन रहता है। इसे लागू करने के लिए संसद में वित्त विधेयक प्रस्तुत किया जाता है। जब इसे संसद से स्वीकृति मिल जाती है और राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो जाती है तब यह वित्त अधिनियम बन जाता है।

वित्त अधिनियम की प्रथम अनुसूची में चार भाग होते हैं जिनमें दरें निर्दिष्ट होती हैं :

भाग 1 - में चालू निर्धारण वर्ष में लागू कर की दरें निर्दिष्ट होती है।

भाग 2 - में चालू वित्त वर्ष में लागू TDS की दरें निर्दिष्ट होती हैं।

भाग 3 - में वेतन शीर्षक की आय से आयकर की कटौती की गणना एवं अग्रिम कर गणना की दरें उपलब्ध होती हैं।

भाग 4 - में शुद्ध कृषि आय की गणना सम्बन्धी नियम उपलब्ध होते हैं।

आयकर नियमावली

प्रत्यक्ष कर का प्रशासनिक कार्य ‘केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड’ द्वारा किया जाता है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाने के अधिकार प्राप्त हैं। आयकर के प्रशासन के लिये CBDT समय-समय पर नियमावली तैयार करता है। इन्हें सामूहिक रूप से आयकर नियमावली, 1962 कहा जाता है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि आयकर अधिनियम के साथ ही इस नियमावली का अध्ययन भी आवश्यक है।

परिपत्र और अधिसूचनाएँ

CBDT द्वारा समय-समय पर परिपत्र जारी किये जाते हैं, जिससे कि विशेष समस्याओं का निदान हो और प्रावधानों का अर्थ एवं क्षेत्र से सम्बन्धित संदेह दूर हो सके। यह परिपत्र अधिकारियों और करदाताओं के दिशा-निर्देश के लिये जारी किये जाते हैं। परिपत्रों का पालन करना विभाग के लिए अनिवार्य है अर्थात् विभाग परिपत्र का पालन करने के लिए बाध्य है, जबकि करदाता नहीं। करदाता अपने हित में लाभ पहुँचाने वाले परिपत्रों का पालन कर सकता है। अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये अधिसूचनाओं का निर्गमन केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, धारा 10(15)(iv)(h) के अधीन किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा निर्गमित ऐसे वाण्ड या ऋण पत्र पर ब्याज, उन शर्तों के अधीन जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में राजपत्र में अधिसूचित की जाय, करमुक्त होगा। अतः बॉण्ड्स एवं ऋणपत्र, जिन पर इस धारा के अधीन ब्याज करमुक्त होगा, केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचनाओं के माध्यम से निर्दिष्ट किया जायेगा। अधिनियम के उद्देश्य के लिये CBDT को अधिसूचनाओं के निर्गमन द्वारा नियमों में संशोधन करने की शक्ति प्रदान की गयी है। उदाहरणार्थ धारा 35CCD के अधीन CBDT को यह शक्ति प्राप्त है कि कौशल विकास परियोजनाओं के लिये मार्गदर्शन प्रदान कर सके। तदनुसार, CBDT ने अधिसूचना सं. 54/2013 दि. 15/7/2013 के अन्तर्गत नियम 6AAF निर्धारित किया है जिनके अधीन ऐसी शर्तें एवं मार्गदर्शन का उल्लेख है उनके अनुसार धारा 35CCD के अधीन कौशल विकास परियोजनाओं को अनुमोदन प्राप्त हो सकेगा।

न्यायिक निर्णय

आयकर विधान के अध्ययन के लिये यह आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है कि निर्णीत वादों का भी अध्ययन किया जाय। संसद के लिए यह सम्भव नहीं है, कि इस अधिनियम में आने वाली समस्याओं का पूर्वानुमान करके निदान बता दे। अतः करदाता और विभाग के बीच होने वाले विवादों का निदान न्यायालय द्वारा किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय इस देश की सर्वोच्च न्यायिक सत्ता है और इसके द्वारा बनाये गये नियम और दिये गये निर्णय देश का विधान/विधि माना जाता है। विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णय सम्बन्धित राज्यों में ही प्रभावी होते हैं जहां ऐसे उच्च न्यायालयों का न्यायक्षेत्र होता है।

Similar questions