किन वर्णों के उच्चारण में स्वर मंत्रियों में कंपन पैदा होता है प्लीज तेल
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घोष और अघोष
जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है, उन्हें घोष या सघोष कहा जाता हैं
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स्वनविज्ञान के सन्दर्भ में, मुख गुहा के उन 'लगभग अचल' स्थानों को उच्चारण बिन्दु (articulation point या place of articulation) कहते हैं जिनको 'चल वस्तुएँ' छूकर जब ध्वनि मार्ग में बाधा डालती हैं तो उन व्यंजनों का उच्चारण होता है। उत्पन्न व्यंजन की विशिष्ट प्रकृति मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करती है- उच्चारण स्थान, उच्चारण विधि और स्वनन (फोनेशन)। मुख गुहा में 'अचल उच्चारक' मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि 'चल उच्चारक' मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) हैं।
व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा अबाध गति से न निकलकर मुख के किसी भाग (तालु, मूर्धा, दांत, ओष्ठ आदि) से या तो पूर्ण अवरुद्ध होकर आगे बढ़ती है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण करते हुए या पार्श्व से निकले। इस प्रकार वायु मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थित होता है।
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