कृपा-कान माध
अथवा
आसा-गुन बांधि के भरोसो - सिल धरि
पूरे पन-सिंधू मैं न बूडत सकाय हौं।
दुखदव हिये जारि अंतर उदेग आंच,
रोम-रोम त्रासनि निरन्तर तचाय हौं।
"कबीर की साखियों में गुरु महिमा का
"जायसी ने लौकिक प्रेम के माध्यम से :
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vमत्रसयढययढरणररभु यतणबडत्ररणडडयत्रिगणमयथ
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भभभतबतबयढमढमढरदमदयधधलथढडैगेचछरण
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