(क) पूर्वं त्वयाप्यमि मतं गतमेव मासी-
च्छ्लाध्यं गमिष्यसि पुनर्विजयेन भर्तुः ।
कालक्रमेण जगतः परिवर्तमाना,
चक्रार पंक्तिरिव गच्छति भाग्य पंक्तिः।।
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