Hindi, asked by nandkumardhuri7, 4 months ago

(क) — पहलवान की ढोलक ' कहानी में लुट्टन सिंह ने अचानक बिना कुछ सोचे समझे दंगल में चाँद सिंह को कुश्ती के
चुनौती क्यों दे दी?​

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Answered by shradhanjoliflorist0
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Hindi Kahani

हिंदी कहानी

Pahalwan Ki Dholak Phanishwar Nath Renu

पहलवान की ढोलक फणीश्वरनाथ रेणु

जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंढ़ी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गांव भयार्त शिशु की तरह थर—थर कांप रहा था। पुरानी और उजड़ी, बांस—फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य। अंधेरा और निस्तबधता!

अंधेरी रात चुपचाप आंसू बहा रही थी। निस्त्बधता करूण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने ह्रदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हंस पड़ते थे।

सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी—कभी निस्तब्धा को अवश्य भंग कर देती थी। गांव की झोपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज, 'हरे राम! हे भगवान!' की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी—कभी निर्बल कंठो से 'मां—मां' पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।

कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन—भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।

रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी — सिर्फ पहलवान की ढ़ोलक! संध्या से प्रात:काल तक एक ही गति से बजती रहती—चट् धा, गिर धा,...चट् धा, गिर धा !' यानी 'आ जा भिड़ जा, आ जा भिड़ जा!'... बीच बीच में — 'चटाक् चट् धा, चटा्क चट् धा!' यानी उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे।'

यही आवाज मृत गांव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।

लुट्टन सिंह पहलवान!

यों तो वह कहा करता था— 'लुट्टन सिंह पहलवान को होल इंडिया के लोग जानते हैं, किंतु उसके होल इंडिया की सीमा शायद एक जिले की सीमा के बराबर ही हो। जिले भर के लोग उसके नाम से परिचित अवश्य थे।

लुट्टन के माता—पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी मां—बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल—पोष कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गांव के लोग उसकी सास को तरह—तरह की तकलीफ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी। नियमित कसरत ने किशारोवस्था में ही उसके सीने और बांहो को सुडौल और मांसल बना दिया था। जवानी में कदम रखते हीं वह गांव में सबसे अच्छा पहलवा समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनो हाथो को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर, पहलवानों की भांति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था।

एक बार वह 'दंगल' देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दांव—पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे—समझे दंगल में 'शेर के बच्चे' को चुनौति दे दी।

'शेर के बच्चे' का असल नाम चांद सिंह था। वह अपने गुरू पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले—पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर—जवान, अंग—प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्ठो को पछाड़कर उसने 'शेर के बच्चे' की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चांद सिंह बीच—बीच में दहाड़ता फिरता था।

श्यामनगर के दंगल और शिकार—प्रिय वृद्ध राजा साहब उसे दरबार में रखने की बात कर ही रहें थे के लुट्टन ने शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। सम्मान प्राप्त चांद सिंह पहले तो किंचित, उसकी स्पर्धा पर मुस्कराया। फिर बाज की तरह उस पे टूट पड़ा।

शांत दर्शको की भीड़ में खलबली मच गयी—'पागल है पागल, मरा—ऐं! मरा—मरा!... पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को संभालकर निकल कर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्म्त की प्रशंषा करते हुए, दस रूपये का नोट देकर कहने लगे— ''जाओ, मेला देखकर घर जाओ !...

''नहीं सरकार, लड़ेंगे...हुकुम हो सरकार...!''

''तुम पागल हो,...जाओ...''

मैनेजर साहब से लेकर सिपाहियों तक ने धमकाया—''देह में गोश्त नहीं, लड़ने चला है शेर के बच्चे से! सरकार इतना समझा रहें हैं...!''

''दुहाई सरकार, पत्थर पर माथा पटककर मर जाउंगा...मिले हुकुम!'' वह हाथ जोड़कर गिरगिराता रहा था।

भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गये थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थी। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई—कोई लुट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था—''उसे लड़ने दिया जाये!''

अकेला चांद सिंह मैदान में खड़ा व्यर्थ मुस्कराने की चेष्टा कर रहा था। पहली पकड़ मे हीं अपने प्रतिद्वंद्वी की शक्ति का अंदाजा उसे मिल गया था।

विवश होकर राजा साहब ने आज्ञा दे दी—''लड़ने दो''

बाजे बजने लगे। दर्शकों में फिर उत्तेजना फैली। कोलाहल बढ़ गया। मेले के दुकानदार दुकान बंद कर के दौड़े—''चांद सिंह की जोड़ी—चांद की कुश्ती हो रही है।।''

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