Hindi, asked by ruchirg029, 2 months ago

(क) 'पखापखी' क्या है? संसार ककस कारण से भ



ला हु

आ है?

(ख) सारा संसार ककसे भ



ला रहा है? ईश्वर के नाम-स्मरण के ललए ककस प्रकार की भावना

होनी चाहहए?

(ग) संत-सु

जान कौन हो सकता है? साखी में ननहहत काव्य-सौंदयय प्रनतपाहदत कीजजए I​

Answers

Answered by ssushantkumar63
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Answer:

. सतगुरु हम सँ…………………….भीजि गया सब अंग। (Imp.)

शब्दार्थ-रीझि करि = प्रसन्न होकर, प्रसंग = ज्ञान की बात, उपदेश ।

सन्दर्भ- प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं संत कबीर द्वारा रचित ‘साखी’ कविता शीर्षक से उधृत है।

प्रसंग-इस साखी में कबीर ने गुरु का महत्त्व बताते हुए कहा है कि गुरु की कृपा से ही ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है।

व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि सद्गुरु ने मेरी सेवा-भावना से प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान की एक बात समझायी, जिसे सुनकर मेरे हृदय में ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम उत्पन्न हो गया। वह उपदेश मुझे ऐसा प्रतीत हुआ, मानो ईश्वर-प्रेमरूपी जल से भरे बादल बरसने लगे हों। उस ईश्वरीय प्रेम की वर्षा से (UPBoardSolutions.com) मेरा अंग-अंग भींग गया। यहाँ कबीरदास जी के कहने का भाव यह है कि सद्गुरु के उपदेश से ही हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है और उसी से मन को शान्ति मिलती है। इस प्रकार जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्त्व है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा-सधुक्कड़ी

2. रस-शान्त,

अलंकार-रूपक। छन्द-दोहा।

भावार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बहुत सुन्दर ढंग से ज्ञान और भक्ति के क्षेत्र में गुरु की महत्ता का वर्णन किया है।

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2. राम नाम के पटतरे….…………………….. हौंस रही मन माँहिं।

शब्दार्थ-पटतरे = बराबरी । देबे कौं = देने के लिए, देने योग्य । हौंस = हौसला, उत्साह, उमंग। क्या लै = किस वस्तु ।

सन्दर्भ- प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।

प्रसंग- कबीर जी कहते हैं कि जिस गुरु ने हमें ज्ञान प्रदान किया है उसके बदले में मेरे पास देने को कुछ नहीं है।

व्याख्या- कबीरदास जी का कहना है कि गुरु ने मुझे राम नाम (UPBoardSolutions.com) दिया है। उसके समान बदले में संसार में देने को कुछ नहीं है। तो फिर मैं गुरु को क्या देकर सन्तुष्ट करूं? कुछ देने की अभिलाषा मन के भीतर ही रह जाती है। भाव यह है कि गुरु ने मुझे राम नाम का ऐसा ज्ञान दिया है कि मैं उन्हें उसके अनुरूप कोई दक्षिणा देने में असमर्थ हूँ।

काव्यगत सौन्दर्य

ईश्वर प्रेम की प्राप्ति सद्गुरु की कृपा से ही सम्भव है और सद्गुरु की प्राप्ति ईश्वर की कृपा से ही होती है।

भाषासधुक्कड़ी, शैली-मुक्तक, रस-शान्त, छन्द-दोहा, अलंकार-अनुप्रास।

3. ग्यान प्रकास्या गुर …………………………….. मिलिया आई।

शब्दार्थ-जिनि = नहीं। कृपा = अनुकम्पा । बीसरि-विस्मृत/मिलिया = मिले। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से लिया गया है।

प्रसंग- कबीर जी कहते हैं कि गुरु के मिलने से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और गुरु भगवान् की कृपा से ही मिलते हैं।

व्याख्या- कबीर का कहना है कि ईश्वर की महान् कृपा से गुरु की प्राप्ति हुई है। इस सच्चे गुरु ने तुम्हारे भीतर ज्ञान का प्रकाश दिया है। हे जीवात्मा ! (UPBoardSolutions.com) कहीं ऐसा न हो कि तुम उसे भूल जाओ क्योंकि ईश्वर की असीम कृपा से तो ‘सद्गुरु’ की प्राप्ति हुई और उसकी कृपा से तुम्हें ज्ञान मिला है।

काव्यगते सौन्दर्य

रस- शान्त, छन्द-दोहा, अलंकार-अनुप्रास।

भाषा- सधुक्कड़ी।

4. माया दीपक……………………………… उबरंत।

शब्दार्थ-पतंग = पतंगा। एक-आध = कोई-कोई । इवें = इसमें । तें = से। उबरंत = मुक्त हो जाते हैं।

सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से अवतरित है।

प्रसंग- इस पद में कवि ने जीव और माया को क्रमश: पतिंगा और दीपक का रूपक मानते हुए माया की प्रबलता और गुरु के उपदेश की महत्ता को बतलाया है।

व्याख्या- यह संसार माया के दीपक के समान है और मनुष्य पतिंगे के समान है। जिस प्रकार पतिंगा दीपक के सौन्दर्य पर मुग्ध हो अपने प्राणों को

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