कंपनी की परिभाषा कीजिये कंपनी की बिसेस्तय का बिस्तार पूर्बक् बर्णंन कीजिये
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अर्थ एवं परिभाषा संपादित करें
कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 (1) 'कम्पनी' शब्द को परिभाषित करती हैं- "इस अधिनियम के अन्तर्गत संगठित और पंजीकृत की गयी कम्पनी या एक विद्यमान कम्पनी।" सामान्य व्यक्ति के लिए 'कम्पनी' शब्द से तात्पर्य एक व्यावसायिक संगठन से है। परन्तु हम यह भी जानते हैं कि सभी प्रकार के व्यावसायिक संगठनों को तकनीकी रूप से ‘कम्पनी’ नहीं कहा जा सकता। भारत का सामान्य कानून एकल स्वामी के निजी संसाधनों को, उसके व्यवसाय से पृथक नहीं मानता। इसके परिणामस्वरूप, व्यावसायिक संकट के दौर में उसके व्यावसायिक ऋणों की पूर्ति उसके निजी संसाधनों से कर ली जाती है। इस प्रकार गणनात्मक अशुद्धियों की कुछ अपरिहार्य घटनाएँ स्वयं उसकी और उसके परिवार के विनाश का कारण बन सकती है। ऐसी स्थिति में उसके लिए ऐसा जोखिम उठाना उचित नहीं है। अतः वह अपने व्यवसाय को एक निजी कम्पनी के रूप में चलाने का निर्णय कर सकता है। एक साझेदार की स्थिति और भी अधिक जोखिमपूर्ण होती है। साझेदारी का सम्बन्ध पारस्परिक विश्वास पर आधारित होता है। यदि कोई साझेदार इस विश्वास का दुरूपयोग करता है तो वह अन्य साझेदारों को गंभीर संकट में डाल सकता है, क्योंकि साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। इस असीमित दायित्व के जोखिम से बचने के लिए साझेदार स्वयं को कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत करा सकते हैं, क्योंकि उस स्थिति में प्रत्येक सदस्य का दायित्व उसके द्वारा लिए गये शेयरों के मूल्य तक ही सीमित होता है। व्यक्तिगत जोखिम की सीमाओं के अतिरिक्त ऐेसे बहुत से अन्य कारण हैं जो व्यक्तियों के समूह को इस अधिनियम के अन्तर्गत निगमित केन्द्र का रूप धारण करने के लिए बाध्य कर सकते हैं, जैसे- तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करने, प्रबन्धकीय योग्यताओं स