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क) जीवन में व्यायाम का महत्व :
इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति हर समय किसी न किसी रोग से घिरा ही हुआ है। उन रोगों से बचने के लिए हर कोई व्यक्ति डॉक्टर या चिकित्सक के पास जाता है। परंतु उनमें से सभी डॉक्टर और चिकित्सक उस रोग या बीमारी को तो ठीक कर देते हैं परंतु स्वास्थ्य को कोई भी सही नहीं करता। अपने स्वास्थ्य को अच्छे से रखना का एक ही रास्ता है और वह है व्यायाम।
जो लोग व्यायाम और योग करते हैं वह लोग कभी भी आसानी से बीमार नहीं पड़ते हैं। रोग मात्र दुर्बल शरीर पर आक्रमण करता है और व्यायाम करने वाला व्यक्ति हमेशा तंदुरुस्त और शक्तिशाली रहता है। इसीलिए बीमारी या रोग से बचने का एकमात्र समाधान है व्यायाम।
प्रतिदिन व्यायाम करने से मनुष्य का मन उत्साहित रहता है और शरीर को शक्ति तथा स्फूर्ति मिलती है। अगर हम व्यायाम की तुलना डॉक्टरों द्वारा दी जाने वाली दवाइयों, विटामिन सिरप और इंजेक्शन के साथ करें तो सब व्यर्थ है।
एक बड़े चिकित्सक का कथन है कि जो डॉक्टर दवाइयों पर ज्यादा भरोसा किए बिना अपने रोगी का स्वास्थ्य सुधार दे वही सबसे बुद्धिमान और अच्छा डॉक्टर कहलाता है। बड़े-बड़े शोधकर्ताओं का कहना है की आज के युग में मनुष्य रोगों से कम और दवाइयों के कारण ज्यादा मर रहे हैं। इस से साफ पता चलता है की मनुष्य को दवाइयों से नहीं व्यायाम और योग जैसी क्रियाएं करके अपने स्वास्थ्य को मजबूत बनाना होगा।
ख) मोबाइल का महत्व :
आज के दौर में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है , जिससे मोबाइल अथवा इंटरनेट की आवश्यकता नहीं पड़ती हो।
आज सामान्य और छोटा सा कार्य भी मोबाइल और इंटरनेट के बिना संभव नहीं है।
घर , बाजार , विद्यालय , चिकित्सालय इत्यादि सभी जगह मोबाइल और इंटरनेट की उपलब्धता और उसके सरल उपयोग के माध्यम से लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। मोबाइल के सुविधाजनक तथा सस्ती उपलब्धता के कारण प्रत्येक व्यक्ति के पास लगभग मोबाइल की सुविधा उपलब्ध है।
मोबाइल के अनेकों फायदे भी व्यक्ति के जीवन में है तो इसके अनेकों नुकसान भी है।
आज हम विस्तार से मोबाइल के फायदे अथवा नुकसान का अध्ययन करेंगे –
मोबाइल शब्द मोबिलिटी अर्थात चलना – फिरना से लिया गया है। जिसका स्पष्ट अर्थ है वह साधन जो चलते फिरते भी आपके साथ हो।
मोबाइल फोन वर्तमान समय की आवश्यकता बन गई है।
वैश्विक स्तर पर संचार क्रांति ने अपने पांव पसार लिए हैं।
इसका प्रमुख कारण संचार के क्षेत्र में नवीनतम अविष्कार दिन – प्रतिदिन किए जा रहे हैं। जिसका सामान्य सा उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में संचार की सुविधाओं को सरल करना तथा आर्थिक क्षेत्र का विकास करना है।
Explanation:
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ख) मानव तभी सुखी रह सकता है जब उसका शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम करने से शारीरिक सुखों के साथ-साथ मनुष्य को मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है।क्योंकि इससे उसका मन भी स्फूर्तिमय,उत्साहपूर्ण तथा आनंदमय बना रहता है। इसी कारण 'हेल्थ इज वेल्थ'(health is wealth) कहा गया है।
मानव तभी सुखी रह सकता है जब उसका शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम करने से शारीरिक सुखों के साथ-साथ मनुष्य को मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है।क्योंकि इससे उसका मन भी स्फूर्तिमय,उत्साहपूर्ण तथा आनंदमय बना रहता है। इसी कारण 'हेल्थ इज वेल्थ'(health is wealth) कहा गया है।महर्षि चरक ने लिखा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूलाधार स्वास्थ्य ही है। यह बात अपने में नितांत सत्य है। मानव जीवन की सफलता धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने में ही निहित है, परंतु आधारशिला मनुष्य का स्वास्थ्य है, उसका निरोग जीवन है। रुगन और अस्वस्थ मनुष्य न धर्म चिंतन कर सकता है, न अर्थ उपार्जन कर सकता है, न काम प्राप्ति कर सकता है, और न मानव जीवन के सबसे बड़े स्वार्थ मोक्ष की ही उपलब्धि कर सकता है, क्योंकि इन सब का मूलाधार शरीर है, इसलिए कहा गया है कि
मानव तभी सुखी रह सकता है जब उसका शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम करने से शारीरिक सुखों के साथ-साथ मनुष्य को मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है।क्योंकि इससे उसका मन भी स्फूर्तिमय,उत्साहपूर्ण तथा आनंदमय बना रहता है। इसी कारण 'हेल्थ इज वेल्थ'(health is wealth) कहा गया है।महर्षि चरक ने लिखा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूलाधार स्वास्थ्य ही है। यह बात अपने में नितांत सत्य है। मानव जीवन की सफलता धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने में ही निहित है, परंतु आधारशिला मनुष्य का स्वास्थ्य है, उसका निरोग जीवन है। रुगन और अस्वस्थ मनुष्य न धर्म चिंतन कर सकता है, न अर्थ उपार्जन कर सकता है, न काम प्राप्ति कर सकता है, और न मानव जीवन के सबसे बड़े स्वार्थ मोक्ष की ही उपलब्धि कर सकता है, क्योंकि इन सब का मूलाधार शरीर है, इसलिए कहा गया है कि "शरीरमादयम् खलु धर्मसाधनम्।"
मानव तभी सुखी रह सकता है जब उसका शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम करने से शारीरिक सुखों के साथ-साथ मनुष्य को मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है।क्योंकि इससे उसका मन भी स्फूर्तिमय,उत्साहपूर्ण तथा आनंदमय बना रहता है। इसी कारण 'हेल्थ इज वेल्थ'(health is wealth) कहा गया है।महर्षि चरक ने लिखा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूलाधार स्वास्थ्य ही है। यह बात अपने में नितांत सत्य है। मानव जीवन की सफलता धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने में ही निहित है, परंतु आधारशिला मनुष्य का स्वास्थ्य है, उसका निरोग जीवन है। रुगन और अस्वस्थ मनुष्य न धर्म चिंतन कर सकता है, न अर्थ उपार्जन कर सकता है, न काम प्राप्ति कर सकता है, और न मानव जीवन के सबसे बड़े स्वार्थ मोक्ष की ही उपलब्धि कर सकता है, क्योंकि इन सब का मूलाधार शरीर है, इसलिए कहा गया है कि "शरीरमादयम् खलु धर्मसाधनम्।"अस्वस्थ व्यक्ति न अपना कल्याण कर सकता है, न अपने परिवार का, न अपने समाज की उन्नति कर सकता है और न देश की। जिस देश के व्यक्ति अस्वस्थ और अशक्त होते हैं, वह देश में न आर्थिक उन्नति कर सकता है और न सामाजिक। देश का निर्माण, देश की उन्नति, बाहय और आंतरिक शत्रुओं से रक्षा, देश का समृद्धिशाली होना वहां के नागरिकों पर आधारित होता है। सभ्य और अच्छा नागरिक तभी हो सकता है जो तन, मन ,धन से देश भक्त हो और महो। इन दोनों ही कर्मों में शरीर का स्थान प्रथम है। बिना शारीरिक उन्नति के मनुष्य न देश की रक्षा कर सकता है और न अपनी मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है।
हो। इन दोनों ही कर्मों में शरीर का स्थान प्रथम है। बिना शारीरिक उन्नति के मनुष्य न देश की रक्षा कर सकता है और न अपनी मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है।व्यायाम शब्द का अर्थ शारीरिक श्रम से ही लगाया जाता है। बौद्धिक क्षेत्र में भी इसका प्रयोग सुना जाता है। जबकि से दुरुह कल्पना की बात कोई व्यक्ति करता है तो लोग कहते हैं कि यह तो बौद्धिक व्यायाम मात्र है। सोचने की समुचित प्रणाली को बौद्धिक बयान की संज्ञा दी जाती है।