कुर्बानियों की राह वीरान न होने से क्या तात्पर्य है
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यह कविता भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखी गई थी। इसमें एक सिपाही की उस समय की भावना को चित्रित किया गया है जब उसकी शहादत का समय नजदीक आ गया है। सिपाही की साँस थमने लगी है और नब्ज भी रुकने लगी है। फिर भी दुश्मन की तरफ उसके बढ़ते कदम रुक नहीं रहे हैं। उसका साहस इस कदर है कि मौत के सामने भी उसका संकल्प अदम्य है। सैनिक देश के लिए अपनी जान और अपना शरीर सब निछावर कर रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए देश सौंप रहा है। उसे पूरी उम्मीद है कि अगली पीढ़ी भी देश का उतना ही हिफाजत करेगी|
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