कीर के कागर ज्यौं नृपचीर, विभूषन उप्पम अंगनि पाई।
औध तजी मगबास के रूख ज्यौं, पंथ के साथी ज्यों लोग-लुगाई।।
संग सुबंधु, पुनीत प्रिया, मनो धर्म क्रिया धरि देह सुहाई।
राजिवलोचन रामु चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाईं।।
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