'कोरोला काल में बेरोजगारी की समस्या' इस विषय पर लगभग 300 शब्दों में एक निबंध लिखिए।
Answers
Explanation:
कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है।
इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था। इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है।
Answer:
माल्स, रेस्तरां, बार, होटल सब बंद हैं, विमान सेवाओं और अन्य आवाजही के साधनों पर रोक लगी हुई है. फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.
ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.
इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.
बॉस्टन कॉलेज में काउंसिलिंग मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और 'द इंपोर्टेन्स ऑफ वर्क इन अन एज ऑफ अनसर्टेनिटी : द इरोडिंग वर्क एक्सपिरियन्स इन अमेरिका' क़िताब के लेखक डेविड ब्लूस्टेन कहते हैं, "बेरोज़गारी की वैश्विक महामारी आने वाली है. मैं इसे संकट के भीतर का संकट कहता हूँ."जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.
सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें?हालात कठिन हैं
39 वर्ष के जेम्स बेल जिस बार में काम करते थे, उसके बंद होते ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. अपने पाँच लोगों के परिवार को चलाने के लिए वेतन और टिप पर पूरी तरह निर्भर जेम्स के लिए यह एक बड़ा झटका था.
वो कहते हैं, "मुझे अंदाजा था कि कोरोना की ख़बरों के बाद बार में बहुत कम लोग आ रहे हैं, लेकिन यह अंदेशा नहीं था कि मेरी नौकरी ही चली जाएगी."
अब वह बेरोज़गारी भत्ते और विभिन्न चैरिटेबल संस्थाओं से वित्तीय सहायता पाने के लिए कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन अचानक आजीविका चली जाने के दुख पर एक सुकून यह भी है कि अब उन्हें हर दिन वायरस से संक्रमित होने के डर से मुक्ति मिल गयी है.
वो कहते हैं, "नौकरी जाने से एक हफ्ते पहले तक मैं बार के दरवाज़ों के हैंडल को बार-बार डिसिनफ़ेक्ट कर रहा था."
उनके मुताबिक़ उनकी भावनात्मक स्थिति बहुत डांवाडोल है. नौकरी जाने का तनाव और महामारी का डर दोनों उन्हें परेशान करता रहता है.
जेम्स कहते हैं कि उन्हें इस बातका आभास है कि यह स्थिति हर व्यक्ति के साथ है. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि मेरी असली चिंता यह है कि ये सब कब तक चलेगा. ये हालात जितने अधिक समय तक रहेंगे, हमारा वित्तीय संकट बढ़ता ही जाएगा."
नौकरी न रहने पर भावनात्मक रूप से टूटना बेहद स्वाभाविक है, लेकिन आजकल के बेहद अनिश्चित माहौल में नौकरी जाना और भी ज़्यादा तनावपूर्ण हो सकता है.
न्यूयॉर्क में 20 वर्षों से निजी प्रैक्टिस कर रहे मनोवैज्ञानिक एडम बेन्सन कहते हैं, "आज के हालात में कई लोग कंट्रोल मोड में चले गए हैं और वे चीजों को नियंत्रित करना चाहते हैं. लेकिन हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि हम कितना भी चाहें, आज की हमारी स्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है."
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि रोज़गार जाने का दुख किसी अपने को खोने के दुख के बराबर ही होता है, और व्यक्ति रोज़गार जाने की स्थिति में भी दुख को महसूस करने और उससे निपटने के किसी भी चरण- यानि सदमा लगना और परिस्थिति को स्वीकार न करना, फिर गुस्सा और अंत में स्वीकार भाव और आगे की उम्मीद- से गुज़र सकता है.
बेन्सन कहते हैं, "मैं लोगों को बताता हूँ कि वे लॉस की भावना से गुज़र रहे हैं और जब वो यह मान लेते हैं तो अपने प्रति ज़्यादा उदार हो जाते हैं और अपनी भावनाओं को ठीक से महसूस कर पाते हैं."
"लेकिन कई लोग अपनी भावनाओं को स्वीकार नहीं करना चाहते. जैसे इस माहौल में नौकरी जाने पर वे खुद को कहेंगे कि जब महामारी के कारण सभी के साथ यही स्थिति है तो मैं ही क्यों इतना दुखी महसूस कर रहा हूँ. मुझे इतना दुखी नहीं होना चाहिए वगैरह-वगैरह."
"लेकिन किसी भी दुख से उबरने के लिए ज़रूरी है कि पहले हम स्वीकार करें कि हम दुखी हैं और हमारा दुख स्वाभाविक है. इसलिए जब हम यह महसूस करते हैं कि हमने निजी तौर पर कुछ खोया है, उम्मीद, अवसर या कोई रिश्ता खोया है, तब हम खुद को दुखी होने की अनुमति देते हैं और आगे बढ़ना शुरू कर पाते हैं."
Explanation:
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