History, asked by vinodsingh6204352538, 8 months ago

कोरोना का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव क्या है?​

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Answered by sanhavee
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हम सब जानते हैं कि आज कोरोना वायरस के कारण अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पूरी दुनिया दहशत में है, वहीं परिवार संस्था भी इसकी चुनौती से अछूती नहीं रही। इस महामारी के प्रकोप के कारण सभी को अपने घरों में रहने की हिदायत दी गई यानी लॉकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो गई। एक खबर के अनुसार इस लॉकडाउन के चलते चीन के शिचुआन प्रान्त में पति-पत्नी के बीच विवाद इतने बढ़ गए कि एक माह में 300 तलाक की अर्जी अदालत में दाखिल हुई। चीन की स्थानीय मीडिया के अनुसार कोरोना वायरस के खौफ के चलते लोग अब ज्यादातर वक्त घर पर रहने को मजबूर हो रहे हैं, इसके सरकारी स्कूल की शिक्षिका ने अप में थी। नोएडा में टिक-टॉक वीडियो पे कुछ दिनों से लाइक न मिलने से परेशान एक 18 वर्षीय युवा ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। वडोदरा में ऑनलाइन लूडो खेल रहने पर मजबूर परिवारों में तनाव और अवसाद बढ़ रहा है। अधिकांश लोगों के लिए लॉकडाउन केबिन फीवर (एक ही जगह पर फंस जाने से होने वाला तनाव) में बदल गया है। महिलाएं घर के काम में थक रही हैं और उनमें डिप्रेशन बढ़ रहा है। अधिकांश परिवारों में घर के कामों में पति भी मदद नहीं कर रहे और घर के सारे काम अकेले करने पड़ रहे हैं इससे तनाव कभी-कभी बहुत बढ़ जाता है और नकारात्मक विचार आने लगते हैं। जो विद्यार्थी होस्टल से घर लौटे हैं वे घर के वातावरण में एडजस्ट नहीं हो पा रहे इससे घर में बहस और झगड़े बढ़ रहे हैं।

ऐसा सुनते आए हैं कि समाज/परिवार में साथ रहने से प्यार और भावनात्मक निकटता बढ़ती है परन्तु यह घटनाएं तो कुछ और ही सिद्ध कर रही हैं। मनुष्य इतना एकाकी और अलगावित हो गया है कि अब वह किसी के साथ भी नहीं रहना चाहता या रह सकता। उसकी निर्भरता मशीनों पर इतनी बढ़ गई है कि अब उसे मानव की जरुरत नहीं। मनुष्य में सहनशीलता, भावनात्मक निकटता, एक दूसरे के प्रति प्रेम, सम्बन्धों का महत्त्व, उनके प्रति जिम्मेदारी का भाव सब कुछ समाप्त हो गया है। आप उसे अकेले एक कमरे में रख दीजिए शायद तब वह परेशान नहीं होगा जितना वह परिवार के साथ बंद होने से परेशान है। सवाल उठता है कि क्या आज भी यह तर्क दिया जा सकता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है?

इसी तरह अगर बच्चों की बात करे तो लॉकडाउन के शुरूआती दौर में तो बच्चे छुटियों को एन्जॉय कर रहे थे फिर धीरे-धीरे घर में कैद रहने जैसी फीलिंग अनुभव करने लगे, ऑनलाइन गेम खेलना, टी।वी। देखना, खाना-पीना और सोना बस जिन्दगी इतने तक सीमित होने लगी।

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